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राज्य में जिन हमर लैब के लिए आवश्यक रीएजेंट व दूसरे उपकरणों की खरीदी के लिए फरमान जारी हुआ था, उनमें से आधे से ज्यादा खुले ही नहीं हैं।

रायपुर। हेल्थ में 660 करोड़ के खरीदी घोटाले का एक स्याह पक्ष यह भी है कि राज्य में जिन हमर लैब के लिए आवश्यक रीएजेंट व दूसरे उपकरणों की खरीदी के लिए फरमान जारी हुआ था, उनमें से आधे से ज्यादा खुले ही नहीं हैं। बल्कि इसकी आड़ में ताबड़तोड़ बल्क में सामग्री खरीद ली गई। भारी कमीशन के एवज में वहां भी सामान की सप्लाई करवा दी गई, जहां जांच की सुविधा ही नहीं थी। 

ऐसा जांच एजेंसी की रिपोर्ट में भी दर्ज है। बड़े पैमाने पर खरीदी में गड़बड़ी की शिकायत के बाद ईओडब्लू ने केस दर्ज कर सप्लायर कंपनी के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा को गिरफ्तार कर लिया है। रिमांड पर लेकर उससे पूछताछ की जा रही, जिसमें कई खुलासे होने की उम्मीद है। इसमें अफसरों की मिलीभगत जाहिर हो रही है। जांच में उनके नाम सामने आएंगे। जांच में पता चला है कि घोटाले की शुरुआत हमर लैब स्थापना के समय से हुई है। राज्य के 27 जिला अस्पताल और 41 विकासखंडों के सामुदायिक स्वास्थ केंद्रों में हमर लैब खोले जाने थे। गौर करने वाली बात यह है कि अब तक 14 जिलों में इसकी शुरुआत ही नहीं हो पाई है। 

 जांच की सुविधा आधी-अधूरी

वहीं जिन स्थानों पर इसका संचालन हो रहा है, वहां पूरी जांच की सुविधा आधी-अधूरी है। 41 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के टार्गेट में केवल सात स्थानों पर इसे खोला गया है, मगर वहां की सुविधा भी कुछ नियमित जांच तक सिमटकर रह गई हैं। सिलसिलेवार मामले का समझा जाए तो 2022 में खरीदी के फरमान के साथ खेल शुरू हुआ था। सीजीएमएससी और संचालनालय स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कई अधिकारी रीएजेंट सहित अन्य उपकरणों की खरीदी के महाघोटाले में बराबर के भागीदार हैं। राज्य के लोगों को निशुल्क रक्त संबंधी विभिन्न जांच की सुविधा देने के लिए 2021 में 27 जिलों और 41 ब्लाक में हमर लैब खोलने की योजना बनाई गई थी। इसके लिए आवश्यक उपकरण, मशीन आदि खरीदी की जानी थी। जनवरी 2022 में संचालक स्वास्थ सेवा ने मशीन और रीएजेंट की आपूर्ति करने सीजीएमएससी को पत्र भेजा और यही से घोटाले की शुरुआत हुई। 

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नियम के मुताबिक,  डीएचएस की कमेटी जिला स्तर पर स्वास्थ्य केंद्रों की आवश्यकता और वहां मौजूद सुविधाओं का आकलन कर डिमांड तैयार करती है 
, उसी आधार पर सप्लायर एजेंसी को क्रय आदेश जारी किया जाता है। कमीशन खोरी के चक्कर में इस व्यवस्था को दरकिनार कर दिया गया और मार्च-अप्रैल 2023 में करोडों के रीएजेंट सहित अन्य उपकरणों की एक साथ खरीदी का आदेश जारी कर दिया। स्वास्थ्य केंद्रों में सुरक्षित भंडारण की व्यवस्था नहीं थी, इसके बावजूद वहां थोक में रीएजेंट थोप दिए गए। इस दौरान जिन अफसरों ने इसका विरोध किया, उन्हें कई तरीके से धमकाया भी गया। हार्ट, किडनी से संबंधित बीमारियों की जांच में काम आने वाले रीएजेंट की स्वास्थ्य केंद्रों को जरूरत नहीं थी, इसलिए वहां पड़े-पड़े करोड़ों का सामान खराब हो गया।

इधर, जांच कमेटी का पुनर्गठन 

ईओडब्लू में मामला दर्ज होने और कंपनी डायरेक्टर की गिरफ्तारी के बाद अफसरों में हड़कंप है। सीजीपीएमसी ने खुद ही मामले की जांच के लिए छह डॉक्टर, अफसरों की टीम का गठन कर दिया है। 28 जनवरी को टीम का गठन हुआ। जांच टीम  को 2021 से 2025 तक रीजेंटस दवाइयां और उपकरण किस मद से किस आधार पर खरीदे गए, इसकी जांच कर रिपोर्ट देने कहा गया है। बताते हैं, कमेटी गठन का यह संशोधित आदेश था। इसके पहले भी कमेटी बनी थी, उसमें यह संशोधन किया गया है।

निर्माता नहीं, फिर भी मिला काम 

नियम के मुताबिक सीजीएमएससी द्वारा निविदा प्रक्रिया पूरी कर किसी मशीन की सप्लाई का काम उसका निर्माण करने वाली कंपनी को देती है। मोक्षित कार्पोरेशन सीबीसी के साथ किसी अन्य मशीन का उत्पादन नहीं करती, बावजूद इसके केवल रसूख और कमीशनखोरी के चक्कर में उसे सप्लाई का ठेका दे दिया गया। इसके अलावा सप्लायर कंपनी के एमडी ने कुछ सेल कंपनी भी खोली और उसके नाम से भी कई तरह की सप्लाई के लिए रेट कांट्रेक्ट करवा लिया था।

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