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कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान का नाम कांगेर नदी के नाम पर पड़ा है। कांगेर घाटी 200 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है। कांगेर घाटी को वर्ष 1982 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला था।

महेंद्र विश्वकर्मा-जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान का नाम कांगेर नदी के नाम पर पड़ा है। कांगेर घाटी 200 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है। कांगेर घाटी को वर्ष 1982 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला था। यह ऊंचे पहाड़ों, गहरी घाटियों, विशालकाय वृक्षों और विभिन्न प्रजातियों के वन्य जीवन के लिए अनुकूल स्थान है। 

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान एक विशिष्ट मिश्रित आर्द्र पर्णपाती प्रकार का वन है। जिसमें साल, सौगांव, सागौन और बांस के वृक्ष प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इस क्षेत्र की सबसे लोकप्रिय प्रजाति बस्तर मैना है जो अपनी मानव आवाज से सभी को मंत्रमुग्ध कर देती है। राज्य पक्षी, बस्तर मैना, एक प्रकार का पहाड़ी मैना (ग्रुनकुला धारियोसोआ) है, जो मानव आवाज की नकल करने में सक्षम है। जंगल प्रवासी और स्थानीय पक्षियों का घर है। यहां वन विभाग की ओर से पर्यटकों की सुविधा के लिए समिति के माध्यम से 35 जिप्सी चलाया जा रहा है। वर्षा ऋतु तथा वन्यजीव प्रबंधन के मद्देनजर कांगेर घाटी नेशनल पार्क में जिप्सी संचालन को पर्यटकों की सुरक्षा हेतु 16 जून से बंद किया गया है। 

हल चला रहे जिप्सी चालक 

इससे उद्यान में वर्तमान में जिप्सी बंद किया गया, जिससे जिप्सी चालक बेरोजगार हो गए हैं। इसके चलते बेरोजगार 35 जिप्सी चालक परिवार के लालन-पालन के लिए अब स्टेयरिंग के बदले खेत में हाथ से हल चला रहे। जिप्सी चालक रिंकू ठाकुर सहित अन्य चालकों ने बताया कि वे अब जिप्सी बंद होने से बेरोजगार हो गए हैं, जिससे वे उद्यान के आसपास स्थित गांव में स्थित खेती में हल जोतकर धान उगाएंगे और उनके हाथ जिप्सी के स्टेयरिंग के बदले हल चला रहे हैं। हालांकि उद्यान में आने वाले पर्यटकों से प्रत्येक हितग्राही को लगभग ढाई लाख रूपए की आय मिली थी।

संचालन बंद में कर रहे खेती

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक चूड़ामणी सिंह ने बताया कि, नवंबर माह से जिप्सी का संचालन शुरू होने से चालक पर्यटकों की सुविधा के लिए कार्य करेंगे। हालांकि जिप्सी चालक उद्यान से सटे गांव के निवासी हैं। उनका खेत है जहां जिप्सी संचालन के दौरान वे लोग खेती कर रहे हैं।
 

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