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इस जिले में कच्ची शराब का कारोबार बड़े पैमाने पर होता है। पिछले दो सालों में 182 से अधिक कार्रवाई करते हुए 76 से अधिक लोगों को जेल भी भेजा गया है।

विकास चौबे और टेकचंद कारडा -बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के 10 से अधिक गांव ऐसे हैं जहां घर-घर में अवैध शराब बनाई जाती है और कारोबार महीनों नहीं सालों से चल रहा है। आबकारी और पुलिस की टीम कई बार कार्रवाई भी करती है लेकिन इस धंधे पर असर नहीं पड़ा है। तखतपुर क्षेत्र का सोनबंधा, धूमा, चकरभाठा क्षेत्र का नगाराडीह, कोटा क्षेत्र के लोकबंद से लेकर कई ऐसे गांव हैं जहां कच्ची  शराब का कारोबार बड़े पैमाने पर होता है। शराब का निर्माण कारखाने की तरह किया जाता है। पिछले दो सालों में 182 से अधिक कार्रवाई करते हुए 76 से अधिक लोगों को जेल भी भेजा गया है। 10 हजार लीटर से अधिक की शराब जब्ती हुई है तो 30 हजार किलो लहान भी जब्त किया गया है।

बिलासपुर जिले के चकरभाठा,कोटा,तखतपुर,हिरी व मस्तूरी इलाके में बड़े पैमाने पर महुआ शराब बनाने व बेचने का अवैध कारोबार चल रहा है। पिछले कुछ सालों में यह अवैध धंधा तेजी से बढ़ा भी है। तखतपुर क्षेत्र के ग्राम सोनबंधा,बराही,धूमा में बड़े पैमाने पर कच्ची शराब बनाई जाती है। चकरभाठा क्षेत्र के नगाराडीह गांव में तो कार्रवाई करने से पहले आबकारी और पुलिस की टीम को कई बार सोचना पड़ता है क्योंकि अवैध धंधे से जुड़े लोग हमला भी कर देते हैं। मस्तूरी क्षेत्र के पचपेड़ी में तो आबकारी अमले पर हमला भी हो चुका है।

आंगन में गड्डा खोदकर भरते हैं गंदा पानी

पिछले दिनों नगाराडीह,सोनबंधा में आबकारी टीम ने जो कार्रवाई की उसमें पाया गया कि एक घर के आंगन में शराब बनाने का सामान रखा हुआ है। वहां आंगन में एक गड्डा भी खुदा हुआ था जिसमें शराब के पानी को बहाया जाता है। अधिकारियों के मुताबिक देसी शराब एक फल से बनती है जिसे महुआ कहा जाता है। यह फल जब पेड़ से पूरी तरह से पक कर गिरता है उसके बाद इस फल को पूरी तरह से सुखाया जाता है। इसके बाद सभी फलों को बर्तन में पानी में मिलाकर कुछ दिन तक भिगोकर रखा जाता है। उसके बाद उस बर्तन को आग पर गरम किया जाता है और गरम होने पर जो भाप निकलती है उसको पाइप के द्वारा दूसरे बर्तन में इकट्ठा किया जाता है। भाप ठंडी होने पर लिक्विड फॉर्म में जो मिलता है वह शराब होती है।

वास्तविक लागत 15 रुपए से भी कम

दूसरी ओर जिस देसी शराब को सरकार 80 रुपए पाव दर पर बेचती है उसकी वास्तविक लागत 15 रुपए से भी कम है क्योंकि महुआ से शराब निकालने वाले बताते हैं कि एक किलो महुवा 40 रुपए में मिलता जिससे एक लीटर शराब बनती है। बिलासपुर और मुंगेली जिले के बहुत से गांव हैं जिनका इसी अवैध रूप से रोजगार चलता है। महुआ शराब बनाना बहुत आसान है। इसलिए ही गांव गांव में महुआ की खरीदी होती है। पुलिस के डर से लोग शराब बनाने का काम दूरस्थ इलाके में करते हैं।

इनसे बनती है शराब

दरअसल एक लीटर शराब को बनाने में सड़ा-गला गुड़,शीरा,नौसादर,यूरिया, धतूरे के बीज,ऑक्सिटोसिन इंजेक्शन और यीस्ट को आपस में मिलाया जाता है। जब ग्राहक नशा कम होने की बात करते हैं तब मिश्रण में कुछ तत्वों जैसे नौसादर,धतूरे के बीज और ऑक्सीटोसिन (वो इंजेक्शन जो गाय-भैंस का दूध उतारने के लिए दिया जाता है)की मात्रा बढ़ा दी जाती है। जब तक यह तत्व एक निश्चित मात्रा में रहते हैं नशा बढ़ता है लेकिन कई बार कोई तत्व ज्यादा हो जाता है. तो शराब जहरीली हो जाती है। इससे जान भी जा सकती है। कई बार कुछ लोग ज्यादा पैसा कमाने के लिए भी नशा ज्यादा करना चाहते हैं जो जानलेवा साबित होता है। ऑक्सिटोसिन जैसे कैमिकल मिलाने की वजह से शराब में मिथाइल एल्कोहल की मात्रा आ जाती है। मिथाइल एल्कोहल शरीर में जाते ही शरीर के अन्य रसायनों से मिलकर रिएक्शन करने लगता है। इससे शरीर के अंदरूनी अंग काम करना बंद कर देते हैं। इसकी वजह से आदमी की कई बार तुरंत मौत हो जाती है। कई बार यह स्लो पॉइजन की तरह भी काम करता है।

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