धन्यकुमार जैन- राजनांदगांव। सांसारिक मोह त्याग कर आत्म कल्याण की ओर अग्रसर साध्वी वृंदो का विशाल समूह इन दिनों ऐसी पद यात्रा पर निकला है, जो गुरु की समाधि स्थल से शुरू होकर 20 तीर्थकरों और करोड़ों मुनियों की मोक्ष भूमि में समाप्त होगी। ब्रह्मलीन जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की जेष्ठ श्रेष्ठ शिष्य आर्यिका 105 गुरुमती माता सहित 48 साध्वियां लगभग 900 किलोमीटर की दूरी नंगे पैर तय कर प्रमुख जैन तीर्थ सम्मेद शिखर जी पहुंचेंगी। उल्लेखनीय कि,  बीते साल फरवरी में जैन समाज के सबसे बड़े संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज की समाधि राज्य के पहले जैन तीर्थ चन्द्रगिरी में हो गई थी। हाल ही उनकी स्मृति में विनयांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमे सौ से अधिक साधु, साध्वियों के अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शिरकत की थी। 

श्री शाह ने आचार्य श्री की स्मृति में बनने वाले स्मारक का भूमिपूजन करने के अलावा सौ रुपए का स्मृति सिक्का जारी किया था। आचार्य श्री को विनयांजलि देने के बाद साधु साध्वियों ने विहार करना शुरू कर दिया है। इसी क्रम में आचार्य श्री की पहली शिष्या आर्थिका 105 गुरुमति माता और आर्यिका दृढ़मति माता, पावनममति माता ससंघ ऐसे लंबे विहार पर निकली हैं, जो जैन धर्म को दो बेहद महत्वपूर्ण स्थानों को जोड़ती है। 26 फरवरी को चन्द्रगिरी तीर्थ से विहार कर डोंगरगांव, राजनांदगांव, भिलाई, रायपुर, जशपुर अंबिकापुर आदि स्थानों से गुजरते हुए साध्वी वृंदों का विशाल समूह करीब 900 किमी की दूरी पैदल तय कर जैन तीर्थ सम्मेद शिखर जी पहुंचेगा। 

तय करेंगी 900 किमी की दूरी 

79 वर्षीय आर्यिका गुरुमति माता, 64 वर्षीय दृढ़मति माता, पावन मति माता सहित 48 साध्वी वृंदो का दल जैनाचार्य विद्यासागर महाराज को विनयांजलि देने के बाद राज्य के पहले तीर्थ चन्द्रगिरी से करीब 900 किमी की दूरी पर झारखंड में स्थित सम्मेद शिखर तीर्थ के लिए विहार कर रही हैं। साध्वी वृंद दुर्ग, रायपुर, जशपुर, अंबिकापुर होते हुए सम्मेद शिखर जी पहुंचेगी। 

 42 साल बाद देवभूमि में कदम

 जानकारी के अनुसार बंडा (सागर) के प्रभाचंद जैन के घर 30 जुलाई 1956 को जन्म लेने वाली सुमन ने 18 साल की आयु में ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया था। इसी अवधि में उन्होंने जैनाचार्य विद्यासागर महाराज के साथ 1983 में सम्मेद शिखर तीर्थ की वंदना की थी। आचार्य श्री ने उन्हें 2 अक्टूबर 1987 को आर्यिका दीक्षा दिया था। वह आचार्य श्री की पहली शिष्य हैं। आर्यिका गुरुमति माता करीब 42 सालों बाद 20 तीर्थकरो की मोक्ष भूमि जा रही हैं।

बेहद कठिन डगर 

जीवन के 79 बसंत देख चुकी आर्यिका गुरुमति माता सहित अन्य साध्वियां आने वाले दिनों में झुलसा देने वाली गर्मी के बीच नंगे पैर लंबी दूरी तय कर 20 तीर्थकरों की मोक्ष भूमि पहुंचेंगी। गौरतलब है कि जिस प्रकार मुस्लिम समुदाय के लिए मक्का मदीना और हिन्दुओं के लिए चार धाम बेहद महत्वपूर्ण स्थान हैं, इसी प्रकार जैन अनुयायियों के लिए सम्मेद शिखर सबसे पावन तीर्थ है। कहा जाता है कि जो भी 27 किमी के क्षेत्रफल में फैले इस तीर्थ की तीन वंदना करता है, उसे नर्क गति प्राप्त नहीं होती है।