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 रीएजेंट और उपकरण खरीदी के नाम पर हुए 660 करोड़ के महाघोटाले में तीन अफसरों की शनिवार को ईओडब्लू दफ्तर में पेशी हुई। 

रायपुर। रीएजेंट और उपकरण खरीदी के नाम पर हुए 660 करोड़ के महाघोटाले में तीन अफसरों की शनिवार को ईओडब्लू दफ्तर में पेशी हुई। जीएम टेक्निशियन कमलकांत पाटनवार, बसंत कौशिक और बायोमेडिकल इंजीनियर झिरौंद्र रावटिया से गहन पूछताछ हुई। जांच के दायरे में आए इन अधिकारियों से ईओडब्लू की टीम ने पूछा कि बिना पड़ताल कैसे करोड़ों के रीएजेंट और उपकरण खरीदी के लिए सहमति दी गई।  

इस मामले से जुड़े अन्य अधिकारी मीनाक्षी गौतम, डॉ. अनिल परसाई सहित अन्य अधिकारियों से पूछताछ किए जाने की संभावना है। सोमवार को ईओडब्लू में पेश होने वाले अधिकारियों में दो आईएएस के भी शामिल होने की संभावना बन रही है। शनिवार को तीनों अधिकारियों को सुबह से ही ईओडब्लू के कार्यालय बुला लिया गया था। बारी-बारी से जांच अधिकारियों के अलावा आईजी अमरेश मिश्रा ने भी उनसे पूछताछ की। 

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सूत्रों के मुताबिक,  तीनों अफसरों पर मोक्षित कार्पोरेशन को ठेका दिलाने नियमों में जोड़-तोड़ की साजिश रचने का आरोप है। काफी देर की पूछताछ के दौरान उनसे विभिन्न तरह के सवाल किए गए, जिसमें दवा कार्पोरेशन में प्रतिनियुक्ति पर आने से लेकर गोलमाल किए जाने के बदले मिलने वाला हिस्सा तक शामिल था।  मिलने वाला हिस्सा तक शामिल था। अफसरों ने आम जनता के हित से जुड़े करोड़ों के टेंडर जारी करने लापरवाही पूर्वक सहमति देने पर अचरज भी जताया। उनसे दस्तावेज से संबंधित सवाल भी किए गए और निर्देश दिया गया कि प्रकरण में पूछताछ के दौरान उन्हें फिर उपस्थित होना पड़ेगा।

बनाई गई थी हाईलेबल कमेटी 

करोड़ों का रीएजेंट खराब होने का मामला सामने आने के बाद शासन स्तर पर इसकी अनावश्यक सप्लाई और बरबादी का आकलन करने के लिए हाईलेवल पर कमेटी बनाई थी। सचिव स्तर के अधिकारी इस टीम का नेतृत्व कर रहे थे, मगर इनकी जांच पूरी नहीं हो पाई और प्रकरण घोटाले के रूप में जांच के लिए ईओडब्लू तक पहुंच गया।

विवाद के बाद भी भुगतान 

दवा कार्पोरेशन के अधिकारी मोक्षित कार्पोरेशन पर इतने मेहरबान थे कि उसका भुगतान बाकी सप्लायरों को नजर अंदाज कर कर दिया जाता था। वर्ष 2021-23 के बीच उसे 450 करोड़ का भुगतान हुआ, इसके बाद मामले का खुलासा हुआ और सालभर पहले स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी ने जांच समिति का गठन किया। कमेटी ने अपने स्तर पर खरीदी, सप्लाई के बिंदुओं पर जांच की। टीम ने मामले में दवा कार्पोरेशन के अधिकारियों को दोषी पाया था। उनकी रिपोर्ट आने के बाद भी अफसर ने आरोपों को नजर अंदाज कर सप्लायर एजेंसी को 50 करोड़ रुपए दे दिया। इस भुगतान ने सीजीएमएससी के वर्तमान अधिकारियों को कटघरे में खड़ा कर दिया है।

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