रुचि वर्मा - रायपुर। प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने थोक में योजनाएं चलाई जा रही है, दावे भी किए जा रहे हैं, पर आंकड़े इसके उलट हैं। ड्रॉप आउट अर्थात स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या के मामले में छत्तीसगढ़ 11वें पायदान पर है। प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं में शाला छोड़ने वाले छात्रों की संख्या कम है, लेकिन उच्च माध्यमिक कक्षाओं में पहुंचते ही शाला त्यागी छात्रों की संख्या तेजी के साथ बढ़ जाती है।
प्रदेश में 100 में से 15वां छात्र बारहवीं कक्षा तक पहुंचने के पहले ही पढ़ाई छोड़ देता है। ड्राप आउट छात्रों के मामले में बिहार शीर्ष पर है। यहां 100 में से 20 छात्र ऐसे हैं, जो पहली कक्षा में प्रवेश तो लेते हैं, लेकिन 12वीं तक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग द्वारा ये आंकड़े जारी किए गए हैं। गौरतलब है कि प्रदेश के 56615 स्कूलों में 57 लाख स्टूडेंट रहे हैं।
फेल नहीं करने की रणनीति ने गिराई गुणवत्ता
जानकारों के अनुसार, इसकी दो मुख्य वजहें मध्यान्ह भोजन और पास-फेल की रणनीति है। शासकीय विद्यालयों में छात्रों को आठवीं कक्षा तक ही मध्यान्ह भोजन वितरित किया जाता है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवार से आने वाले विद्यार्थी रोजी-रोटी की तलाश में इस कारण भी पढ़ाई छोड़ देते हैं। शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत आठवीं कक्षा तक किसी भी विद्यार्थी को अनुत्तीर्ण नहीं किए जाने का प्रावधान है। इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। नवमी कक्षा में प्रवेश लेने के बाद अनुत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों की संख्या में भी वृद्धि होती है और फेल होने के बाद वे विद्यालय छोड़ रहे हैं।
प्राथमिक व माध्यमिक में कम है दर
प्रदेश में प्राथमिक कक्षा में स्कूल छोड़ने वाले विद्यार्थियों का दर 2.3% तथा माध्यमिक कक्षा में 5.3% है। उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं के साथ ही प्राथमिक व माध्यमिक कक्षा में भी शाला त्यागी छात्रों के मामले में अव्वल है। प्राथमिक स्तर पर 13.7% तथा माध्यमिक स्तर पर 21 2% विद्यार्थी यहां पढ़ाई छोड़ रहे हैं।
केरल में सबसे कम ड्राप-आउट
स्कूली शिक्षा में केरल का प्रदर्शन सर्वाधिक अच्छा है। स्कूल छोड़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या यहां सबसे कम है। केरल में 100 में से सिर्फ 218% विद्यार्थी ही 12वीं कक्षा पहुंचते तक स्कूल छोड़ते हैं। दक्षिण भारतीय राज्यों में अन्य तमिलनाडु में ड्रॉपआउट छात्रों की संख्या 5.45% और पांडुचेरी में 5.9% है। हिमाचल प्रदेश में ड्रॉप आउट छात्रों की संख्या 4.6%, पंजाब में 5.21%, चंडीगढ़ में 5.17% और उत्तराखंड में 5.6% है।