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पहाड़ी क्षेत्र में बसे यह गांव के लोग दशकों से मोबाइल नेटवर्क समस्या से जूझ रहे हैं। इससे परेशान होकर गांव के कुछ युवाओं ने लकड़ी का टावर बनाया। जिस पर मोबाइल रखकर बात हो जाती है, लेकिन नेट नहीं चलता। 

रविकांत सिंह राजपूत- कोरिया। प्रदेश की पहली विधानसभा भरतपुर सोनहत के सोनहत विकासखण्ड के लगभग एक दर्जन से ज्यादा गांव मोबाइल नेटवर्क की समस्या से जूझ रहे है। इनमें से गांव के कुछ युवाओं ने डिजिटल भारत में प्रवेश करने के लिए जुगाड़ तंत्र से लकड़ी का मोबाइल टावर बनाया है। इसमें मोबाइल रखते ही मोबाइल पर बात करने लायक नेटवर्क आ जाता है, लेकिन नेट नहीं चलता। पहाड़ी क्षेत्र में बसे यह गांव के लोग दशकों से मोबाइल नेटवर्क समस्या से जूझ रहे हैं। सोनहत विकासखण्ड के सिंघोर ग्राम पंचायत में वैसे तो मोबाइल टावर का ढांचा वर्षों से खड़ा हुआ है, लेकिन इसमें फ्रीक्वेंसी न लगे होने से यह कबाड़ साबित हो रहा है। गांव के युवाओं ने लकड़ी का मोबाइल टावर तैयार किया है, जिसकी रेंज में आते ही किसी भी सिम का मोबाइल काम करने लगता है। लेकिन मोबाइल में इंटरनेट न चलने के कारण ग्रामीणों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

जब हरिभूमि-INH 24*7 को इस बात की जानकारी मिली कि, गांव में लकड़ी के टॉवर के सहारे ग्रामीण मोबाइल पर बात करते हैं तो हमारी एक टीम इस बात का सच जानने के लिए पहुंच गई। जब हमारी टीम सिंघोर ग्राम पंचायत के खैरवारी पारा पहुंचे तो गांव का एक युवक रामनिवास लकड़ी से बने हुए टावर पर मोबाइल रखकर बात करता हुआ नजर आया। जब युवक रामनिवास लकड़ी से बने हुए टावर पर मोबाइल रखकर बात कर रहा था, तब हमारे संवाददाता के मोबाइल पर नेटवर्क नहीं था। जब रामनिवास से इस बारे में पूछा गया तो रामनिवास ने कहा कि, आप अपना मोबाइल इस लकड़ी के टावर पर रखिए तभी बात कर पाएंगे। जब संवाददाता ने मोबाइल टावर पर रखा तो नेटवर्क तो मिल गया लेकिन नेट नहीं चला। 

गांव के लगभग आधा दर्जन स्थानों में लगे हैं लकड़ी के टावर 

रामगढ़ इलाके के सिंघोर ग्राम के युवाओं को मोबाइल में नेटवर्क न होने से काफी दिक्कतें होती थी। ऐसे में गांव के युवाओं ने अलग-अलग जगहों में जाकर मोबाइल में नेटवर्क ढूंढना शुरू किया। जहां उन्हें मोबाइल में हल्का सा भी नेटवर्क दिखा उस स्थान पर उन्होंने लकड़ी का खूंटा गाड़ दिया और मोबाइल रखने के लिए एक स्टैंड लगा दिया। स्टैंड में मोबाइल रखकर लोग कॉल पर बातचीत करते हैं। स्टैंड से मोबाइल हटाते ही कॉल डिस्कनेक्ट हो जाता है। गांव के लगभग आधा दर्जन स्थानों में ऐसे टॉवर देखे जा सकते है। 

6 किमी दूर पहाड़ी पर मिलता है नेटवर्क 

गांव के बुजुर्ग संत कुमार के पास जब inh संवाददाता पहुंचे तो उन्होंने उनसे लकड़ी के मोबाइल टावर होने को लेकर बात की। उन्होंने बताया कि, गाँव के लड़कों ने इसे बनाया है जिसके माध्यम से मोबाइल पर बात हो जाती है। संतकुमार ने बताया कि, यहां के ग्रामीणों को राशन लेने में दो दिन लग जाते हैं। सरकार द्वारा दिए जाने वाले राशन को लेने के लिए पहले दिन गांव से लगभग 6 किलोमीटर दूर पहाड़ पर जाकर जहां मोबाइल नेटवर्क आता है और इंटरनेट चलता है वहां राशन दुकानदार ग्रामीणों से थम लगवाते हैं और अगले दिन राशन दुकान से राशन वितरित करते है। 

डिजिटल काम करवाने के लिए जाना पड़ता है 40 किमी दूर 

संतकुमार का कहना है कि, आज जब ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है ऐसे में यहां नेटवर्क न होने से गांव के बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई का हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं। यह पूरा क्षेत्र मोबाइल नेटवर्क विहीन है। यहां के सिंघोर, अमृतपुर, सेमरिया, सुकतरा, उधैनी, उज्ञाव जैसे इलाको में मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट कनेक्टिविटी न होने के कारण यहां की लगभग 5 हजार आबादी को आधार कार्ड, पैन कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र और अन्य सरकारी दस्तावेज बनवाने के लिए 40 किलोमीटर दूर सोनहत विकासखण्ड मुख्यालय का रुख करना पड़ता है। वहीं पूरे इलाके में डिजिटल लेनदेन न होने के कारण बाहर से यहां आने वालों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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