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Delhi AIIMS Robot: दिल्ली एम्स और आईआईटी दिल्ली ने मिलकर एक ऐसा रोबोट तैयार कर रही है, जिससे मरीजों की चलने में होगी। यह देसी तकनीक काफी सस्ती होगी।

Delhi AIIMS Robot: दिल्ली एम्स और आईआईटी दिल्ली मिलकर एक ऐसा लोअर लिंब रोबोट बना रहे हैं, जो मरीजों की चलने में मदद करेगा। अब देसी रोबोट एक्सोस्केलेटन के जरिए स्ट्रोक और स्पाइनल कॉर्ड की बीमारी के मरीज भी पहले जैसे चल पाएंगे। सबसे अच्छी बात यह है कि इस तकनीक के जरिए पैर का इस्तेमाल करने की क्षमता और ताकत दोनों पहले जैसी हासिल कर पाएंगे। 

देसी रोबोट सस्ते होंगे 
देश भर में करीब 15 लाख लोग स्पाइनल कॉर्ड इंजरी के मरीज हैं और हर साल इनमें लगभग 20 हजार मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि भारत में अभी तक इस प्रकार की तकनीक नहीं है। वहीं, इजराइल में बने एक्सोस्केलेटन की कीमत 80 से 90 लाख तक की है। ऐसे में अब देसी तकनीक की मदद से दिल्ली एम्स रोबोटिक एक्सोस्केलेटन बना रहे हैं, जो काफी सस्ते होगा। 

रोबोट की मदद से फिर चल पाएंगे मरीज
एम्स डॉक्टर के मुताबिक, ऐसे लोग जो किसी प्रकार की ट्रामा इंजरी की वजह से लोअर लिंब में समस्या का सामना करना कर रहे हैं, उनमें एक खास तरह की पहचान की गई है, उन्हें वियरेबल रोबोट में शामिल किया गया। वियरेबल रोबोट एक पहनने वाला रोबोट है, जो लोगों के पैरों के लिए बनाया जाता है। इसे पहनकर वह लोग जो बीमारी या चोट की वजह से अच्छे से चल नहीं पाते हैं, वह फिर से चलना सीख सकते हैं। 

इंसान के शरीर पर की गई स्टडी 
दिल्ली एम्स
और आईआईटी ने मिलकर 100 मरीजों के डेटा के आधार पर एक मशीन बनाई है। इंसान के शरीर के स्ट्रक्चर पर स्टडी की गई है और फिर लोअर लिंब एक्सोरकेलेटन का मॉडल बायोमेट्रिक डिजाइन के आधार पर बनाया है। कई लाख मरीज किसी भी प्रकार की पैरालिसिस से पीड़ित हैं, चाहे वो न्यूरोलॉजिकल या चोट-स्ट्रोक समस्या की वजह से ही क्यों न हो। 

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