Congress final strategy to win delhi election: दिल्ली विधानसभा चुनाव में दो दिन शेष बचे हैं, लिहाजा सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। राजनीतिक सर्वों की बात हो, सट्टे बाजार की बात हो या फिर राजनीतिक जानकारों की, सभी मान रहे हैं कि इस चुनाव में भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच कांटे की टक्कर होने वाली है। ऐसे में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से लेकर वरिष्ठ नेताओं तक बेचैनी होना लाजमी है। यही वजह है कि राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे समेत तमाम वरिष्ठ नेता अपने कार्यकर्ताओं का लगातार उत्साह बढ़ा रहा है। जानकारों की मानें तो कांग्रेस ने दिल्ली चुनाव के लिए अपनी रणनीति भी बदल ली है। तो चलिये बताते हैं कि चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने ऐसी क्या रणनीति बनाई, जिससे यह चुनाव त्रिकोणीय श्रेणी में आ जाए।
दिल्ली चुनाव को लेकर कांग्रेस ने खेला यह दांव
कांग्रेस को 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली है। ऐसे में कांग्रेस दोबारा से दिल्ली की राजनीति में खोया अपना वजूद वापस पाना चाहती है। विडंबना यह है कि दिल्ली चुनाव नजदीक आने के बाद भी कांग्रेस को मजबूत दावेदार के रूप में नहीं देखा जा रहा है। कुछ दिन पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिल्ली कांग्रेस इकाई के नेताओं के चुनाव प्रचार को लेकर नाराजगी भी जताई थी। इसके बाद कांग्रेस नेताओं ने चुनाव प्रचार में सक्रियता तो दिखाने का प्रयास किया, लेकिन हर मुद्दे पर बीजेपी और आप ही महफिल लूट ले गए। चूंकि चुनाव प्रचार में अब दो ही दिन शेष बचे हैं, लिहाजा कांग्रेस ने अपनी रणनीति को बदल दिया है।
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शायद यही वजह है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उदित राज संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की मूर्ति को लेकर केजरीवाल के घर के बाहर पहुंच गए हैं। उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल अंबेडकर जी का सम्मान करना सीखें। अमृतसर में इनकी सरकार है और वहां अंबेडकर जी की मूर्ति को तोड़ा गया है... हमारा कोई राजनीतिक मकसद नहीं है। मैं उन्हें केवल बाबा साहेब अंबेडकर जी की मूर्ति भेंट करने आया हूं। मेरे साथियों के हाथों से मूर्ति ग्रहण कर अरविंद केजरीवाल मांफी मांगे' नीचे देखिये पूरा वीडियो...
#WATCH दिल्ली: कांग्रेस नेता उदित राज ने कहा, "अरविंद केजरीवाल अंबेडकर जी का सम्मान करना सीखें। अमृत्सर में इनकी सरकार है और वहां अंबेडकर जी की मूर्ति को तोड़ा गया है... हमारा कोई राजनैतिक मकसद नहीं है। मैं उन्हें केवल बाबा साहेब अंबेडकर जी की मूर्ति भेंट करने आया हूं। मेरे… pic.twitter.com/yvvR7EEPvA
— ANI_HindiNews (@AHindinews) February 2, 2025
कांग्रेस ने दिल्ली चुनाव से पहले यह फॉर्मूला तैयार किया
समाजवादी पार्टी ने यूपी चुनाव जीतने के लिए पीडीए बनाया था। पीडीए का मतलब पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक को एकजुट करना था। जानकारों की मानें तो सपा की तर्ज पर कांग्रेस ने भी दलित और मुस्लिम वोटरों के ध्रुवीकरण के उद्देश्य से बड़ी रणनीति बनाई है। इसके तहत दलित और मुस्लिम बहुल इलाकों में पर्चे बांटे जाएंगे। मसलन 'वोट देना आप को, जैसा दूध पिलाना सांप' संदेश वाला पर्चा मुस्लिम बहुल इलाकों में बांटा जाएगा, वहीं दलित बहुल इलाकों में 'एससी-एसटी की पीठ में किसने मारा खंजर' शीर्षक वाले पर्चे बांटे जाएंगे।
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मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस पर्चे पर कांग्रेस का उल्लेख नहीं है क्योंकि इसके लिए चुनाव आयोग से इजाजत लेनी पड़ती। एबीपी की एक रिपोर्ट की मानें तो कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और दिल्ली कांग्रेस के वरिष्ठ पदाधिकारियों की बैठक हुई थी, जिसमें यह रणनीति तैयार की गई। चुनाव आयोग से इन पर्चों के लिए इजाजत नहीं ली गई, लिहाजा अधिकारिक रूप से इन पर्चों पर कांग्रेस का उल्लेख नहीं है। बहरहाल, आगे जानिये यह फॉर्मूला सटीक बैठता है, तो कितनी सीटों पर कांग्रेस जीत हासिल कर सकती है।
दिल्ली में दलित और मुस्लिम बहुल सीटें कितनी
दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से मुस्लिम बहुल 12 सीटें हैं, जबकि दलित बहुल छह सीटे हैं। आम आदमी पार्टी ने 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के वोटर्स में जबरदस्त सेंध लगाई, जिसके चलते कांग्रेस एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी। ताजा समीकरणों में भी कांग्रेस प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने की दौड़ में नहीं है। लिहाजा, कांग्रेस कम से कम मुस्लिम और दलित वोटर्स की सीटों पर जबरदस्त वापसी चाहती है। अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस किंग मेकर की भूमिका में आ जाएगी।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो आप ने जिस तरह से 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, फिर 2015 के विधानसभा चुनाव में 67 सीटें हासिल की, उसी राह कांग्रेस भी अपना दम दिखाकर जनता में भरोसा जगाना चाहती है कि कांग्रेस कमजोर नहीं है। इसके चलते जब दोबारा से चुनाव होंगे तो कांग्रेस के सभी वोटर्स आप को छोड़कर घर वापसी कर लेंगे। बहरहाल, यह फॉर्मूला कितना सटीक बैठता है, यह तो 8 फरवरी को आने वाले चुनाव नतीजों के बाद ही पता चल सकेगा।
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