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पंजाब-हरियाणा के खनौरी बॉर्डर पर 100 किसानों का एक जत्था जगजीत सिंह डल्लेवाल के समर्थन में एक दिन की भूख हड़ताल पर है। यहां जानिये लंबा अनशन करने वाले क्रांतिकारियों के बारे में...

पंजाब-हरियाणा के खनौरी बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसान आज बेहद आक्रोशित है। आक्रोश की वजह यह है कि उनके नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के आमरण अनशन को आज 100वां दिन पूरा हो रहा है, लेकिन अभी तक मांगों की मांगों को लेकर सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है। किसानों का कहना है कि आज न केवल खनौरी बॉर्डर पर 100 किसानों का जत्था एक दिन की भूख हड़ताल पर है, वहीं देशभर में भी जगह-जगह अनशन कर डल्लेवाल की लंबी आयु के लिए प्रार्थना कर रहा है। आज हम आपको ऐसे क्रांतिकारियों के बारे में बताते हैं, जिन्होंने अपनी मांगों को पूरा करने के लिए लंबा अनशन किया। नीचे जानिये सबसे लंबा अनशन किसका रहा...

पोट्टि श्रीरामुलु ने आंध्र के लिए दी जान (58 दिन)
Potti Sriramulu
पोट्टी श्रीरामुलु

वर्तमान में आंध्र के निल्लौर जिले के अंतर्गत आने वाले पदमातिपल्ली में 16 मार्च 1901 को पोट्टि श्रीरामुलु का जन्म हुआ। उन्होंने भारतीय स्वंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। देश की आजादी के बाद भी सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर शामिल हुए। उन्होंने मद्रास प्रेसिडेंसी से आंध्र को अलग राज्य बनाने की मांग की। इस मांग पूरा कराने के लिए 5 दिन का अनशन किया। फिर दोबारा से अनशन किया, जो उनकी सांसें रुकने तक यानी 58 दिन तक चला।

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जतिन दास ने आमरण अनशन कर दी शहादत (63 दिन)
Jatin Das
स्वतंत्रता सेनानी जतिन दास।

1929 में पाकिस्तान की लाहौर जेल में भगत सिंह समेत कई क्रांतिकारी बंद थे। अंग्रेज भारतीयों पर खूब अत्याचार करते थे। खाने-पीने में भी भेदभाव किया जाता था। भगत सिंह समेत अन्य क्रांतिकारियों ने इस पर आपत्ति जताई और खाने लायक भोजन देने की मांग की। लेकिन अंग्रेज नहीं माने। इस पर क्रांतिकारियों ने भूख हड़ताल का ऐलान कर दिया। कोलकाता में जन्मे जतिन दास यानी यतिंद्र नाथ ने भी इस आमरण अनशन में हिस्सा लिया। भूख और प्यास उन्हें तड़पाती रही, लेकिन वे अंग्रेजों के आगे नहीं झुके। अंतत: 63 दिन आमरण अनशन के बाद शहादत को प्राप्त हो गए। उनकी शहादत से न केवल जेल प्रशासन बल्कि अंग्रेज शासक भी हिल गए।

पर्यावरण प्रेमी सुंदरलाल बहुगुणा ने 74 दिन किया आमरण अनशन
Sunderlal Bahuguna
पर्यावरण प्रेमी सुंदरलाल बहुगुणा।

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल स्थित मरोडा में 9 जनवरी 1927 को सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म हुआ। वे बचपन से पर्यावरण प्रेमी थी। उन्हें महान पर्यावरण चिंतक के साथ ही चिपको आंदोलन के प्रमुख नेता के रूप में पहचाना जाता है। उन्होंने टिहरी बांध के निर्माण के खिलाफ आंदोलन करते रहे। उन्होंने भागीरथी के किनारे कई बार भूख हड़ताल की, जिसके चलते सरकारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। 1995 में उन्होंने 45 दिन अनशन किया। इसके बाद 74 दिन आमरण अनशन किया। खास बात है कि चिपको आंदोलन में सुंदरलाल बहुगुणा की पत्नी विमल बहुगुणा भी सक्रिय रही थी।

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