Jharkhand Politics: झारखंड की राजनीति में सोरेन परिवार का लंबे समय से वर्चस्व रहा है। लेकिन समय के साथ, उनकी सत्ता पर पकड़ कमजोर होती नजर आ रही है। हाल के दिनों में चंपाई सोरेन को दरकिनार किए जाने से झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) में परिवारवाद और सत्ता संघर्ष की हकीकत सामने आई है। इससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या सोरेन परिवार बजाय राज्य के हितों के अपनी सत्ता बनाए रखने में ज्यादा दिलचस्पी रखता है,?
झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेता की अनदेखी
चंपाई सोरेन ने चार दशकों तक झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। वह झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। इसके बावजूद, आज वह उसी पार्टी में हाशिये पर पहुंच गए हैं, जिसे उन्होंने खुद खड़ा करने में मदद की थी। चंपाई सोरेन की राजनीतिक यात्रा अब संघर्षों और विवादों से घिरी नजर आ रही है, जो यह दर्शाती है कि पार्टी के अंदर परिवारवाद कितना गहराया हुआ है।
महज चार महीने रहा चंपाई का कार्यकाल
चंपाई सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री पद की कमान मुश्किल दौर में संभाली थी। उन्होंने चार महीनों के लिए गठबंधन सरकार की बागडोर संभाली और राज्य के नागरिकों के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं। लेकिन उनका कार्यकाल छोटा रहा, क्योंकि हेमंत सोरेन, जो उस समय जेल में थे, वापस लौट आए और सत्ता पर फिर से काबिज हो गए। यह सत्ता परिवर्तन कई लोगों के लिए एक धोखा प्रतीत हुआ, खासकर उन लोगों के लिए जिन्होंने चंपाई का समर्थन किया था।
हेमंत सोरेन की वापसी से पार्टी के अंदर तनाव
हेमंत सोरेन के सत्ता में वापस आने के बाद चंपाई सोरेन को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया। खासकर कोल्हान क्षेत्र में यह मुद्दा ज्यादा उभरकर सामने आया, जहां लोग पूछ रहे हैं कि क्या चंपाई का हाशिये पर जाना इसलिए है क्योंकि वह शिबू सोरेन के बेटे नहीं हैं? इस पूरे घटनाक्रम ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के अंदर सत्ता संघर्ष और परिवारवाद को और उजागर कर दिया है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा में भ्रष्टाचार और परिवारवाद
सोरेन परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप झारखंड की जनता के बीच निराशा को और बढ़ा रहे हैं। शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन दोनों पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोप लगे हैं। कई लोगों का मानना है कि सोरेन परिवार झारखंड की जनता की सेवा करने से ज्यादा अपनी सत्ता और संपत्ति बनाए रखने में रुचि रखता है।
बिनोद बिहारी महतो की भी हुई अनदेखी
झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन में बिनोद बिहारी महतो जैसे नेताओं का योगदान भी अहम था। लेकिन आज, झारखंड मुक्ति मोर्चा पर सोरेन परिवार का पूरा कब्जा हो गया है, जिससे पार्टी की आंतरिक विविधता खत्म होती जा रही है। अन्य प्रमुख नेताओं को हाशिये पर डालकर सोरेन परिवार ने पार्टी को परिवार के व्यापार में बदल दिया है।
जनता की बढ़ती नाराजगी और बदलाव की मांग
झारखंड के लोग अब सोरेन परिवार के भीतर चल रहे इस सत्ता संघर्ष से नाराज होते जा रहे हैं। जनता चाहती है कि राज्य का नेतृत्व वे लोग करें, जो राज्य के विकास को प्राथमिकता दें। चंपाई सोरेन जैसे काबिल नेताओं की अनदेखी और भ्रष्टाचार के आरोपों ने जनता के बीच यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सोरेन परिवार राज्य का नेतृत्व करने के योग्य है?