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इंदौर फैमिली कोर्ट ने एक केस में मुस्लिम बहू के हक में ऐतिहासिक फैसला दिया है। कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को नाजायज ठहराते हुए पत्नी को साथ रखने के आदेश दिए हैं। दो महीने के भीतर इसका पालन करना होगा।

इंदौर। घर में साथ रहने के दौरान प्राइवेसी मिलना बहू का हक है। यदि वह संयुक्त परिवार में अपने लिए घर में अलग कमरा मांगती है तो यह गलत नहीं है। इसे नहीं देते हुए तलाक (ट्रिपल तलाक) देने का उसके पति का फैसला गलत है। यह बातें  इंदौर फैमिली कोर्ट ने कहते हुए एक केस में मुस्लिम बहू के हक में ऐतिहासिक फैसला दिया है। कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को नाजायज ठहराते हुए पत्नी को साथ रखने के आदेश दिए हैं।  दो महीने के भीतर इसका पालन करना होगा।

घर में अलग कमरे की मांग की होने लगा विवाद 
इंदौर के मोती तबेला निवासी महिला का निकाह 2011में उज्जैन के युवक से हुआ था। 2012 में दोनों को बेटी हुई। परिवार संयुक्त था। जेठ-जेठानी भी शामिल थे, जो साथ रहते थे। घर छोटा होने के चलते महिला को पति के साथ खुले ड्राइंग रूम में रहना पड़ रहा था। घर में ही अलग कमरे की मांग की तो विवाद होने लगे। मई 2014 में पति ने उसे मायके छोड़ दिया। बाद में तीन तलाक भी दे दिया।

कोर्ट ने औरंगजेब के समय के महिला हकों का भी उल्लेख किया  
पीड़िता ने नवंबर 2018 में इंदौर की फैमिली कोर्ट में केस लगाया। 5 साल बाद कोर्ट ने फैसले में कहा, पति ने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन (2017) के अनुसार तीन तलाक लेने की प्रक्रिया पूरी नहीं की है, इसलिए यह अवैध है। उसे पत्नी के साथ रहना होगा। औरंगजेब के समय के महिला हकों का भी उल्लेख किया गया है।

महिला दाम्पत्य संबंधों की पुनर्स्थापना की याचिका प्रस्तुत कर सकती है
कर्नाटक के एक फैसले का हवाला भी दिया है। इसमें कहा है कि कोई मुस्लिम महिला दाम्पत्य संबंधों की पुनर्स्थापना की याचिका प्रस्तुत कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2017 में तीन तलाक पर जो निर्णय दिया था उसका पालन पति द्वारा नहीं किया है, ऐसी स्थिति में तीन तलाक मान्य नहीं है।

परिवार में नौ लोग, कमरे हैं सिर्फ तीन 
पति द्वारा मायके छोड़े जाने के बाद पत्नी ने पहला केस भरण-पोषण का लगाया था। 2016 में इस संबंध में महिला ने कोर्ट को जानकारी दी थी कि मेरे ससुराल में नौ लोग और मेरे दो बच्चे सिर्फ तीन कमरे और एक किचन में रहते हैं। जिस बाहर वाले बैठक कक्ष (ड्राइंग रूम) मुझे रहने के लिए दिया गया, वहां गेट भी नहीं था। इससे मेरी प्राइवेसी कुछ भी नहीं रह गई थी। परिवार में पति के दो भाई, एक बहन, सास सहित कुल नौ लोग उस समय साथ में रह रहे थे। संयुक्त परिवार में निजता नहीं होने से भी विवाद का कारण बना।

इस्लामिक लॉ के रिफरेंस भी कोर्ट ने फैसले में उल्लेखित किए 
मामले में महिला, अपने पति के साथ ही रहना चाहती है। संयुक्त परिवार होने से अपने लिए सिर्फ अलग कमरा भी प्राइवेसी के लिहाज से चाहती थी। इस पर पति का कहना था कि मैं तुम्हें तलाक दे चुका हूं। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि फतवा ए आलमगिरी में भी महिला को निजता का अधिकार है। वो सुरक्षा के लिहाज से भी प्राइवेसी की मांग कर सकती है। कोर्ट ने इस्लामिक लॉ के रिफरेंस भी अपने फैसले में उल्लेखित किए हैं। 

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