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Diseases cure by hot iron: एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक डॉ अजय सिंह ने बताया, नीम-हकीमों द्वारा इन विचित्र प्रथाओं की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। यह रोगी के जीवन को खतरे में डाल सकते हैं। 

Diseases cure by hot iron: मध्य प्रदेश और छत्तीसढ़ के आदिवासी बहुल्य इलाकों में आज भी गर्म छल्ले से दागकर बीमारियों का उपचार किया जाता है। स्थानीय बोलचाल में इसे 'आंकना' कहते हैं। जिस पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चिंता जताई है। एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक डॉ अजय सिंह ने लोहे के गर्म छल्लों से दगवाना बीमारियों का इलाज नहीं है। इस विचित्र प्रथा से रोगी के जीवन को खतरे में डाला जाता है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। जानलेवा साबित हो सकता है। 

एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रोफेसर (डॉ) अजय सिंह ने लोगों को झोला छाप और नीम हकीमों से दूर रहने की सलाह दी है। बताया कि पिछले दिनों एक मरीज गैस्ट्रोसर्जरी ओपीडी में आया था। 10 साल पहले गांव में दर्द और सूजन के लिए झोलाछाप ने उसके पेट पर गर्म लोहे के छल्ले और मिट्टी के बर्तनों से दागा था। बीमारी ठीक नहीं हुई तो एक साल बाद फिर दोहराया। एम्स भोपाल में उसकी जांच की गई तो उसमें हाइपरटेंशन नामक बीमारी मिली। पिछले कई वर्षों से तिल्ली (स्प्लीन) बढ़ रही थी और अब आकार में काफी बड़ी हो गई थी, जिस कारण दर्द होता था। 

गैस्ट्रोसर्जरी विभाग के प्रोफेसर डॉ. विशाल गुप्ता ने बताया कि एक और मरीज़ था, जिसने पेट दर्द के लिए गर्म लोहे के छल्ले और मिट्टी के बर्तनों के गर्म टुकड़ों से पेट पर दगवाया था। बाद में उन्हें पीलिया और बाद में कैंसर जैसी घातक बीमारी हो गई। हालांकि, समय पर उपचार और सर्जरी से कैंसर का उपचार भी हो गया। वह अब पूरी तरह से स्वस्थ है।

एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रोफेसर (डॉ) अजय सिंह ने कहा, देश के कई हिस्सों में नीम-हकीमों द्वारा ऐसी प्रथा ग्रामीण इलाकों में प्रचलित है और एमपी क्षेत्र भी इसका अपवाद नहीं है। इस तरह की विचित्र प्रथाओं की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है, किसी लाभ के बजाय वह रोगी के जीवन को खतरे में डाल सकते हैं। 

उचित जांच और समय पर उपचार जरूरी
पेट में दर्द या पीलिया के कई कारण हैं; पथरी जैसी साधारण समस्या से लेकर कैंसर जैसी गंभीर समस्या तक। सही निदान और उपचार के लिए उचित परामर्श और समय पर जांच जरूरी है। ग्रामीण इलाकों में निरक्षरता, जागरुकता की कमी, गलत धारणाएं ऐसी प्रचलित प्रथाओं के पीछे कुछ कारक हैं। एम्स भोपाल अपने सामाजिक आउटरीच कार्यक्रम के माध्यम से दूरदराज के इलाकों में जनता तक पहुंचने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है।

लकवा, गठिया वात, मिर्गी और धात ठीक करने का दावा 
छत्तीसढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले में हर पांच-दस गांव के बीच एक ऐसा वैद्य है, जो आंककर ही रोगों का इलाज करता है। यह रुपए नहीं लेते, लेकिन कई बार उपचार की यह प्रथा जानलेवा साबित होती है। कांकेर के दूर दुधावा मावलीपारा गांव के वैद्य रत्ती सिंह मरकाम हंसियानुमा गर्म लोहे आंककर लकवा, गठिया वात, मिर्गी, बाफूर, अंडकोष, धात रोग, बेमची, आलचा सहित कई अन्य बीमारियों के उपचार का दावा करते हैं। ओडिशा, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी ऐसे कई वैद्य आपको मिल जाएंगे। रायपुर के चिकित्सक डॉ. नलनेश शर्मा ने इलाज के इस तरीके को खतरनाक बताया है।  

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