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Holi 2025: राजस्थान के सिरोही जिले के पिंडवाड़ा उपखंड के बसंतगढ़ क्षेत्र में आदिवासी महिलाएं प्राकृतिक गुलाल तैयार कर रही हैं।

Holi 2025: होली का त्योहार खुशियों, उमंग और रंगों का प्रतीक है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में रासायनिक रंगों के बढ़ते उपयोग से त्वचा और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा है। इसी को ध्यान में रखते हुए राजस्थान के सिरोही जिले में प्राकृतिक हर्बल गुलाल की पहल की गई है, जिससे होली को सुरक्षित और स्वास्थ्यप्रद बनाया जा सके।

हर्बल गुलाल की अनूठी पहल
राजस्थान के सिरोही जिले के पिंडवाड़ा उपखंड के बसंतगढ़ क्षेत्र में आदिवासी महिलाएं प्राकृतिक गुलाल तैयार कर रही हैं। यह गुलाल पलाश के फूलों और अन्य जैविक सामग्रियों से बनाया जाता है, जो पूरी तरह से केमिकल मुक्त और त्वचा के लिए सुरक्षित होता है।

राजस्थान सरकार की ‘लखपति दीदी योजना’ और ग्रामीण आजीविका विकास परिषद (राजीविका) के सहयोग से यह पहल सफल हो रही है। इस पहल के तहत कई आदिवासी महिलाएं जुड़कर अपनी आजीविका के नए साधन बना रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं।

प्राकृतिक गुलाल की बढ़ती मांग
इस हर्बल गुलाल की मांग राजस्थान के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी तेजी से बढ़ रही है। लोग अब सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल रंगों को प्राथमिकता देने लगे हैं। यह गुलाल न केवल त्वचा के लिए सुरक्षित है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

महिला सशक्तिकरण की मिसाल
यह पहल न केवल त्योहारों को सुरक्षित बना रही है, बल्कि आदिवासी महिलाओं के लिए एक सशक्त आर्थिक अवसर भी प्रदान कर रही है। यह महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाकर उनके आत्मविश्वास को बढ़ा रही है, जिससे वे अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छे से कर पा रही हैं।

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