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Mathura Sri Krishna Janmabhoomi-Shahi Idgah Masjid Dispute: शाही ईदगाह 17वीं सदी में बनाई गई थी। हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद, कृष्ण जन्मभूमि पर बनाई गई है। बीते दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सर्वे के लिए कमिश्नर नियुक्त करने का आदेश दिया था।

Mathura Sri Krishna Janmabhoomi-Shahi Idgah Masjid Dispute: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में मंगलवार को दखल की है। शीर्षतम अदालत ने सर्वे करने के लिए कमिश्नर की नियुक्ति के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट इस मामले में मुस्लिम पक्ष की याचिका सुने। इस मामले में अगली सुनवाई अब 23 जनवरी को होगी। 

भगवान श्री कृष्णलला विराजमान का प्रतिनिधित्व करने वाली वकील रीना एन सिंह ने कहा कि इंतेजामिया कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सर्वे वाले आदेश को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने केवल सर्वेक्षण आदेश पर रोक लगाई। लेकिन उन्होंने मुकदमे पर रोक नहीं लगाई है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुकदमा जारी रहेगा। 

14 दिसंबर को हाईकोर्ट ने दिया था आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में हुए सर्वेक्षण की तर्ज पर मथुरा में शाही ईदगाह परिसर के सर्वे का आदेश दिया था। मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 

7 लोगों ने दाखिल की थी याचिका
हिंदू पक्ष की ओर से भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और 7 अन्य लोगों ने याचिका दाखिल की थी। वकील हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, प्रभाष पांडे और देवकीनंदन जैसे दिग्गज वकील हिंदुओं की तरफ से केस लड़ रहे हैं।

क्या है हिंदू संगठनों का दावा?
हिंदू संगठनों का दावा किया है कि मस्जिद भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर बनाई गई है और सर्वेक्षण की मांग की थी। हिंदू पक्ष ने मथुरा की एक अदालत में याचिका दायर कर विवादित 13.37 एकड़ भूमि के पूर्ण स्वामित्व की मांग की थी। जिसमें दावा किया गया था कि 17वीं सदी में मस्जिद का निर्माण कटरा केशव देव मंदिर को तोड़कर किया गया था। उन्होंने आरोप लगाया कि कृष्ण जन्मभूमि को तोड़ने का आदेश मुगल सम्राट औरंगजेब ने दिया था। 

याचिकाकर्ताओं का दावा है कि मस्जिद की कुछ दीवारों पर कमल की नक्काशी मौजूद है। साथ ही कथित तौर पर 'शेषनाग' की आकृतियां भी मौजूद हैं। इन सबूतों से संकेत मिलता है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर किया गया था। मुस्लिम पक्ष ने पहले 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का हवाला देते हुए याचिका को खारिज करने की मांग की थी, जो किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक स्थिति को 15 अगस्त, 1947 की वास्तविक स्थिति पर लागू होता है। 

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