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Exclusive:जापानी लेखक हिरोयुकी सातो ने हनुमान चालीसा और गीता को Japanese में अनुवाद किया है। जानें कौन हैं ये शख्स और लिखी है कौन सी किताबें।

मधुरिमा राजपाल, भोपाल। भगवान श्रीराम का नाम शाश्वत और असीम है। यह किसी कालखंड तक सीमित नहीं है, न ही सीमाओं से बंधा हुआ है। इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम राम की महिमा सात समंदर पार भारतीयों को गर्व का अनुभव करवा रही है। इंडोनेशिया, पोलैंड, जर्मनी, फ्रांस, जापान और चीन जैसे देशों में भी राम की मौजूदगी महसूस की जा सकती है। उनकी शिक्षा, कार्य और आदर्शों को अपनाकर विदेशियों ने खुद को भारतीयता और अध्यात्म से जोड़ लिया है।

कुछ विदेशियों ने वाल्मीकि और तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस को अपना लिया है। अपनी भाषा में उसका अनुवाद किया। इन ग्रंथों को इस तरीके में पेश किया है कि सभी इसे पढ़ सकें। दिवाली के शुभ अवसर पर हरिभूमि ने ऐसे ही विदेशी भक्तों से मुलाकात की। आइए, आपको मिलवाते हैं जापानी में हनुमान चालीसा और गीता लिखने वाले लेखक हिरोयुकी सातो से। 

जापानी लेखक का राम के प्रति समर्पण
जापानी लेखक हिरोयुकी सातो का राम के प्रति समर्पण इसी बात से समझा जा सकता है कि इन्होंने केवल हनुमान चालीसा और गीता का जापानी में अनुवाद किया है बल्कि अवधी भाषा से रामचरितमानस का भी अनुवाद किया है। उन्होंने ‘हरिभूमि’ से साझा किया कि वह रामानंद सागर की रामायण और बीआर चोपड़ा की महाभारत को अपनी भाषा में जापानी लोगों तक पहुंचाना चाहते थे, क्योंकि ये ग्रंथ उनकी फिल्मी प्रस्तुति के माध्यम से जापान में भी प्रसिद्ध हुए हैं। इसीलिए, उन्होंने सबसे पहले भगवत गीता का जापानी में सरल अनुवाद किया।

गीता का संदेश सभी लोगों के लिए: हिरोयुकी
हिरोयुकी का मानना है कि गीता का संदेश सिर्फ विद्वानों के लिए नहीं बल्कि आम लोगों के लिए भी है। सातो का मानना है कि गीता में भारत की आत्मा बसी है और अब हाल के दिनों में उन्होंने रामचरितमानस का अवधी से जापानी में अनुवाद किया है। सातो के अनुसार, राम की भक्ति केवल भारत तक सीमित नहीं है बल्कि राम मंदिर की स्थापना के बाद दुनिया में भी रामभक्ति का प्रसार देखने को मिला है।

झांसी की रानी आधारित किताब का जापानी अनुवाद
सातो ने हनुमान चालीसा और झांसी की रानी पर आधारित किताब का भी जापानी में अनुवाद किया है। उनका अनुवाद इस तरह से है कि जापानी लोग इन पुस्तकों के भावार्थ को समझ सकें। वह मानते हैं कि यदि युवाओं को फिल्म के जरिए साहित्य में रुचि मिलती है और वे इसे किताबों में पढ़ते हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।

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