हरिभूमि के लिए इंडोनेशिया से अनिल नायक
Exclusive: एक ऐसा देश जहां हिंदू आबादी मात्र 2 प्रतिशत ही है। लेकिन यहां के कण-कण में राम ही राम हैं। राम को धर्म से ऊपर रखने वाला यह देश इंडोनेशिया है। रामचरित यहां के जनमानस में रच बस गया है। यही वजह है कि इंडोनेशिया की दर्जनभर से अधिक भाषाओं में रामायण का अनुवाद हो चुका है। यहां की राष्ट्रीय भाषा इंडोनेशियन में रामलीला का मंचन हाेता है। साथ ही दर्जनभर स्थानीय भाषाओं में भी इसका मंचन किया जाता है।
रामलीला के मंचन में यहां पर भाषा कभी भी बाधा नहीं बनती। इसकी एक खासियत यह भी है कि यहां राम सहित रामायण के कई पात्र मुस्लिमों द्वारा निभाए जाते हैं। इसके लिए महीनों तैयारी भी की जाती है।
हिंदू नहीं बल्कि दूसरे धर्म के लोगों की भी राम में आस्था
इंडोनेशिया में कुछ जगहों पर संपूर्ण रामलीला का मंचन किया जाता है तो कुछ जगहों पर रामायण के कुछ हिस्से का ही मंचन होता है। इस दौरान पूरा इंडोनेशिया राम के रंग में रंगा नजर आता है। यहां प्रत्येक क्षेत्र में हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर हैं। ना केवल हिंदू बल्कि अन्य धर्म के लोगों की भी राम में आस्था है। वे रामचरित को जीवन में उतारने हर संभव कोशिश करते हैं।
यहां सबके लिए राम 'अपने', शासन करता है सहयोग
यहां मूल रूप से भारतीय नागरिक भी बड़ी संख्या में बसते हैं। झारखंड के अनिल नायक बीते 25 सालों से यहां रह रहे हैं और एक्सपोर्ट-इंपोर्ट के बिजनेस से जुड़े हैं। वे बताते हैं कि रामलीला का मंचन देखने तथा दीपावली संबंधित पर्व में शामिल होने हर धर्म-सम्प्रदाय के लोग जुटते हैं। वे हिंदू पर्व और अपने पर्व में कभी भेद नहीं करते हैं। यहां राम उनके लिए अपने ही हैं। इसी तरह बेंगलुरू की वाणी और उनके पति प्रो.रमेश शास्त्री भी 90 के दशक में इंडोनेशिया की राजधानी बाली में जा बसे। वे बताते हैं कि दशकों से गणेश चतुर्थी से लेकर दशहरा और दीपावली तक सभी पर्व वे मनाते आ रहे हैं। इसमें शासन भी उनका सहयोग करता है। दीपावली से पूर्व यहां एम्बेसी की मदद से कई आयोजन इस बार भी हुए।
कई स्थानीय भाषाओं में होता है रामायण का पाठ
हिंदी और संस्कृत ना जानने-समझने वाले भी राम को समझ सकें, इसलिए दशकों पूर्व ही इंडोनेशियाई भाषा के साथ ही साथ अन्य स्थानीय भाषाओं में भी रामायण का अनुवाद किया गया। यहां रहने वाले हिंदू हिंदी और संस्कृत भाषा में रामायण का पाठ करते हैं तो इंडोनेशिया के स्थानीय लोग अपनी भाषा में रामायण का अध्ययन करते हैं। इसमें वहां के स्थानीय लोगों को रुचि इतनी अधिक है कि वे भी नियमित रूप से इनका अध्ययन और पाठ करते हैं।