Winter Asthma Precautions: दि अमेरिकन लंग एसोसिएशन के अनुसार दमा की समस्या मौसम बदलने पर होती है लेकिन सर्दियों में दमा (अस्थमा) के मामले अन्य ऋतुओं की तुलना में बढ़ जाते हैं। इसका कारण यह है कि जाड़े में आमतौर पर सर्दी-जुकाम या फ्लू (इंफ्लूएंजा) आदि फेफड़ों से संबंधित संक्रमण के मामले बढ़ जाते हैं। नतीजतन, लापरवाही बरतने पर श्वास नलियों और फेफड़ों पर दुष्प्रभाव पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप दमा के मामले बढ़ते हैं। वहीं तापमान में गिरावट के कारण सांस नलियां भी कुछ हद तक सिकुड़ती हैं। इस कारण जो लोग पहले से ही दमा से ग्रस्त हैं, उनकी समस्या लापरवाही बरतने पर और बिगड़ सकती है।
दमा का कारण:
सांस नलिकाओं में सूजन और सिकुड़न होने को दमा कहते हैं। दमा के लगभग 80 फीसद से अधिक मामले एलर्जी से संबंधित होते हैं। आमतौर पर जिन कारणों से दमा की समस्या बढ़ती है, उन्हें एलर्जंस कहा जाता है। धूल, धुआं, उमस, नमी, कारपेट में माइट्स, केमिकल युक्त पेंट, विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ और मौसम में बदलाव आदि एलर्जंस के कारण बन सकते हैं।
अस्थमा के लक्षण: वयस्कों में अस्थमा के इस तरह के लक्षण दिख सकते हैं।
- सांस लेने में तकलीफ के कारण गहरी सांस ना ले पाना।
- कुछ दूर चलने पर या थोड़ा सा परिश्रम करने पर सांस फूलना।
- सीने में जकड़न।
- खांसी (सूखी या बलगम वाली) आना।
- सांस बाहर छोड़ते समय सीटी जैसी आवाज होना या घरघराहट होना।
बच्चों में दमा की समस्या
अर्ली व्हीजर: बच्चों में दमा के लगभग एक तिहाई ऐसे मामले 14 साल की उम्र तक खत्म हो जाते हैं और उसके बाद इसकी जीवन में दोबारा पुनरावृत्ति नहीं होती।
मॉडरेट व्हीजर: ऐसा अस्थमा 14 साल की उम्र तक खत्म हो जाता है, लेकिन 35 से 36वें साल में यह समस्या फिर दोबारा सिर उठाती है।
परसिस्टेंट व्हीजर: यह प्रकार बचपन से शुरू होता है और फिर जीवन भर बना रहता है।
प्रमुख लक्षण: सर्दी-जुकाम होना, आंखों में खुजली, मौसम बदलने पर सांस लेने की समस्या का बढ़ जाना और नाक से पानी आना आदि। वायरल संक्रमण से दमा की समस्या बढ़ जाती है।
ट्रीटमेंट: नवजात शिशुओं में दमा होने पर उन्हें सिरप के रूप में दवा दी जाती है। जरूरत पड़ने पर 3 से 5 साल तक के बच्चों के इलाज में नेबुलाइजेशन थेरेपी का सहारा लेते हैं। पांच से बारह साल तक के बच्चों को मीटर डोज इनहेलर से दवा देते हैं। इसके अलावा उन्हें ओरल डोज भी दी जाती है। 13 से 17 साल के किशोरों को इनहेलर के जरिए दवा देते हैं। इसके अलावा उन्हें एंटी एलर्जिक दवाएं भी देते हैं।
ट्रीटमेंट के तरीके
- इनहेलेशन थेरेपी: दमा में इनहेलेशन थेरेपी के नतीजे कारगर साबित होते हैं, क्योंकि इनहेलर के जरिए दवा सीधे फेफड़े में पहुंच कर अतिशीघ्र असर करती है। डॉक्टर से परामर्श लेकर इनहेलर से दवा लें और उनके परामर्श पर अमल करें।
- इम्यूनोथेरेपी: अमेरिकन लंग एसोसिएशन के अनुसार एलर्जी से होने वाले दमा में इम्यूनोथेरेपी काफी हद तक कारगर है। इसके अंतर्गत मरीज को दवाएं और इंजेक्शन देते हैं।
- ब्रांकोथर्मोप्लास्टी: इलाज की यह प्रक्रिया एक डिवाइस से संचालित की जाती है, जिसके अंतर्गत सांस नलियों में सिकुड़न को दूर किया जाता है। दमा के गंभीर रोगियों के इलाज में ब्रांकोथर्मोप्लास्टी काफी कारगर साबित हो रही है।
लाभप्रद सांस संबंधी व्यायाम
- 10-10-20 का नियम: अपने फेफड़ों की क्षमता के अनुसार जहां तक संभव हो गहरी सांस लें। मान लीजिए आप 10 सेकेंड तक सांस अंदर ग्रहण करने में सक्षम हैं, तो इतने ही सेकेंड्स या जितना संभव हो, इसे रोकने का प्रयास करें। फिर धीरे-धीरे 20 सेकेंड्स तक सांस बाहर छोड़ें। प्रतिदिन 5 से 10 मिनट तक इस व्यायाम को करें।
- प्राणायाम और योगासन: वैसे तो सभी प्राणायामों से फेफड़ों का व्यायाम होता है, किंतु दमा रोगियों के लिए अनुलोम-विलोम प्राणायाम विशेष रूप से लाभप्रद है। योगासनों में भुजंगासन, धनुरासन, सर्वांगासन और सूर्य नमस्कार हितकर हैं।
- तैराकी: स्विमिंग से भी फेफड़े सशक्त होते हैं। तैराकी के दौरान पानी के अंदर सांस रोकी जाती है, जिससे फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है।
हंसना और गाना: गाना गाने और खुलकर हंसने से भी फेफड़ों का व्यायाम होता है। इस लिहाज से हंसना और गायन भी फेफड़ों को स्वस्थ रखता है। हंसने और गाने से फेफड़ों में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है।
गुब्बारा फुलाना: ऐसा देखा गया है कि 11 से 20 गुब्बारे हर दिन फुलाने से फेफड़ों की क्षमता में लगातार वृद्धि हो सकती है। हालांकि गुब्बारे फुलाने की एक्सरसाइज को सही प्रकार से करना बहुत जरूरी है।
अस्थमा अटैक पर क्या करें
- पीक एक्सपिरेटरी फ्लोमीटर: सांस फूलना, सीने में जकड़न आदि महसूस होने पर डॉक्टर के परामर्श से पीक फ्लोमीटर का इस्तेमाल करना चाहिए।
- कंट्रोलर इनहेलर का इस्तेमाल: डॉक्टर के परामर्श से कंट्रोलर इनहेलर का नियमित रूप से इस्तेमाल करें। कंट्रोलर इनहेलर सांस नलिकाओं में सूजन और सिकुड़न को कम करते हैं। दमा के लक्षणों को नियंत्रित कर ये दौरे के खतरे को काफी हद तक खत्म कर देते हैं।
- रिलीवर इनहेलर: ये फेफड़े की कार्यप्रणाली को व्यवस्थित कर मरीज को इमरजेंसी से बाहर निकाल देते हैं। इन दिनों रिलीवर और कंट्रोलर इनहेलर का कॉम्बिनेशन भी उपलब्ध है।
बचाव के तरीके
सर्दियों की शुरुआत में ही दमा पीड़ितों को फ्लू से बचाव के लिए वैक्सीन लगवानी चाहिए, क्योंकि फ्लू की समस्या दमा से संबंधित जटिलताएं उत्पन्न करती हैं। जाड़े का मौसम शुरू होने से पहले डॉक्टर से परामर्श लेकर निमोनिया से बचाव की भी वैक्सीन लगवाएं। इन दिनों देश के अनेक नगरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एयर क्वालिटी इंडेक्स) सेहत के लिहाज से खतरनाक स्तर पर है। इसलिए घर से बाहर निकलते समय मास्क पहनें। इनडोर पॉल्यूशन से बचाव के लिए एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। अत्यधिक सर्दी पड़ने या शीतलहर की स्थिति में घर के अंदर रहकर व्यायाम करना ही हितकर है। धूम्रपान से दूरी बनाएं।
जिस व्यक्ति को जिस पदार्थ या माहौल से एलर्जी हो, उससे बचने का प्रयास करे। स्वस्थ जीवनशैली पर अमल करें। नियमित रूप से व्यायाम करें। एक निश्चित समय पर नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन करें। जंक फूड्स और अधिक चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थों से परहेज करें। खट्टे फलों जैसे संतरा, नीबू, मौसंबी और आंवले से बने उत्पादों का सेवन करें। इनमें विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। प्रतिदिन एक संतरे का सेवन दमा रोगियों के लिए अत्यंत लाभप्रद है। डॉक्टर के परामर्श से ही इनहेलर का इस्तेमाल करें। अकसर तनावग्रस्त रहने से दमा रोगियों की समस्या बढ़ सकती है। इसलिए तनावमुक्त रहने के लिए आशावादी सोच रखना और मेडिटेशन करना लाभप्रद है।
प्रस्तुति: विवेक शुक्ला
डॉक्टर एडवाइस
डॉ. एस.पी. राय
सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट
कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल, मुंबई