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One Nation One Election: वन नेशन, वन इलेक्शन पर मोदी सरकार गंभीर है। कोविंद समिति ने इस पर अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। लॉ कमीशन भी जल्द अपनी सिफारिशें सौप सकता है। इसके बाद इस योजना को लागू कर दिया जाएगा।

One Nation One Election: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल स्वतंत्रता दिवस पर 'वन नेशन, वन इलेक्शन' (One Nation One Election) का जिक्र किया था। अब सरकार ने इस दिशा में ठोस कदम उठाने की योजना बनाई है। सूत्रों के अनुसार, मोदी सरकार इस योजना को अपने मौजूदा कार्यकाल में लागू कर देगी। इससे देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। एक साथ चुनाव होने (Simultaneous Elections) से समय और संसाधनों की बचत होगी और सरकार के कामकाज में रुकावटें कम होंगी।

कोविंद कमेटी ने पेश की सिफारिशें
सरकार ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर एक समिति का गठन किया है। इस समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। इस रिपोर्ट में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की सिफारिश की गई है। समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि 100 दिनों के अंदर स्थानीय निकाय चुनाव (Local Body Elections) भी करवाए जा सकते हैं। इससे सरकार को कार्यकुशलता में सुधार का अवसर मिलेगा।

कानून आयोग भी सौंपेगा अपनी सिफारिशें
सूत्रों के अनुसार, लॉ कमीशन (Law Commission) भी जल्द ही अपनी सिफारिशें दे सकता है। आयोग की संभावित सिफारिशों में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव हो सकता है। इस प्रक्रिया को 2029 तक पूरा करने की योजना है। इससे चुनावी प्रक्रियाओं में एकरूपता आएगी और देश के विकास कार्यों में तेजी लाई जा सकेगी।

मोदी का 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर जोर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में जोर देकर कहा था कि बार-बार चुनाव होना देश की प्रगति में रुकावट डालता है। उन्होंने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' को एक ऐसा उपाय बताया जिससे देश की विकास यात्रा और तेज हो सकती है। भाजपा ने इसे अपने चुनावी घोषणापत्र (BJP Manifesto) में भी शामिल किया है। सरकार को उम्मीद है कि इस योजना पर सभी राजनीतिक दलों की सहमति मिल जाएगी।

विपक्ष ने किया है इस योजना का विरोध
विपक्षी दलों ने इस योजना का विरोध किया है। उनका कहना है कि इसके लागू होने से संविधानिक चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं। क्षेत्रीय पार्टियों का मानना है कि इससे वे अपने स्थानीय मुद्दे (Regional Issues) उठाने में सक्षम नहीं रह पाएंगी। इसके अलावा, कुछ दलों ने संसाधनों की कमी का भी हवाला दिया है। उनका कहना है कि संसाधनों की कमी के चलते क्षेत्रीय चुनावों में उनकी भूमिका सीमित हो जाएगी।

चुनावी प्रक्रिया में बढ़ता जा रहा है खर्च
ईवीएम (EVMs) की खरीद और चुनाव संचालन में होने वाला खर्च एक बड़ी चिंता का विषय है। चुनाव आयोग का कहना है कि हर 15 साल में करीब ₹10,000 करोड़ का खर्च आएगा। इससे चुनावी प्रक्रियाओं में आर्थिक दबाव भी बढ़ सकता है। हालांकि, सरकार का मानना है कि एक बार चुनावों का समन्वय हो जाने के बाद इस खर्च में कमी आ सकती है।

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