Supreme Court on Women laws: देश में महिलाओं की सुरक्षा और कल्याण के लिए बनाए गए कानूनों के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि ये कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए हैं, न कि उन्हें अपने पति और ससुराल वालों को धमकाने या धन ऐंठने का जरिया बनाने के लिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को यह समझना चाहिए कि कड़े कानून उनके अधिकारों की रक्षा के लिए हैं। इन्हें अनुचित लाभ उठाने के लिए नहीं बनाया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई मामलों में ऐसा देखा गया है कि रेप, आपराधिक धमकी और क्रूरता जैसे गंभीर धाराओं को 'पैकेज' के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे न केवल रिश्ते खराब होते हैं, बल्कि समाज में गलत संदेश भी जाता है।
विवाह एक पवित्र बंधन, न कि व्यावसायिक समझौता
अदालत ने हिंदू विवाह को एक पवित्र संस्थान बताया। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और पंकज मित्तल की बेंच ने कहा कि विवाह परिवार की नींव है, न कि धन के लेन-देन का माध्यम। उन्होंने कहा कि कानून का उपयोग अक्सर पति और उसके परिवार पर दबाव बनाने के लिए किया जाता है। पुलिस और निचली अदालतें कई बार बिना उचित जांच के गिरफ्तारी कर लेती हैं, जिससे निर्दोष परिवार प्रभावित होते हैं।
गुजारा भत्ता पर सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात
गुजारा भत्ता को लेकर अदालत ने कहा कि इसे दूसरे पक्ष की संपत्ति के समान बनाने का माध्यम नहीं होना चाहिए। अदालत ने देखा कि कई महिलाएं अपने पति की संपत्ति और आय को देखकर भारी रकम की मांग करती हैं। लेकिन ऐसा तब नहीं होता जब पति किसी आर्थिक संकट में होता है। न्यायालय ने इस असमानता पर सवाल उठाते हुए गुजारा भत्ता तय करने के लिए सटीक और संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की बात कही।
12 करोड़ रुपये की स्थायी गुजारा भत्ता की राशि तय
इस मामले में अदालत ने पति को 12 करोड़ रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। यह रकम पत्नी की सभी मांगों के निपटारे के लिए तय की गई। साथ ही, अदालत ने अन्य आपराधिक मामलों को खारिज कर दिया। यह फैसला पारिवारिक विवादों के उचित समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि छोटे-छोटे विवाद भी बड़ी लड़ाई में बदल जाते हैं। यह सिर्फ अहंकार और प्रतिष्ठा की लड़ाई बन जाती है, जिसमें रिश्तों का सम्मान खत्म हो जाता है। अदालत ने विवाह के टूटने के बाद भी सहमति और आपसी सम्मान बनाए रखने की सलाह दी।