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मगरलोड ब्लॉक का कुंडेल निवासी रामनाथ पहले धान की फसल लगाता था. लेकिन वक्त के साथ उन्होंने खेती-किसानी का तरीका बदला और चना फसल लगाकर अपनी आर्थिक स्थिति सुधारी। 

यशवंत गंजीर- कुरुद। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में फसल चक्र परिवर्तन से किसानों को होने वाला फायदा अब दिखने लगा है। गर्मी के धान के बदले दलहनी-तिलहनी और नगदी फसलों की खेती से किसानों को अब कम दिनों में ही दोहरा फायदा हो रहा है। किसानों की खेती की लागत भी कम हुई है, साथ ही भारी मात्रा में पानी की भी बचत हुई है। 

जिले के चना उत्पादक किसानों ने केवल चनाबूट बेचकर ही एक एकड़ फसल से 36-38 हज़ार रुपए तक का शुद्ध मुनाफा कमाया है। चनाबूट को किसान हाईवे के किनारे दुकान लगाकर, स्थानीय बाज़ार और मंडी में थोक और चिल्लर रूप में बेचकर अच्छा फायदा ले रहे है। मगरलोड विकासखंड के कुंडेल गांव के किसान रामनाथ ने दो-सवा दो महीने में ही लगभग 84 हज़ार रुपए का चनाबूट बेचा है और इस पर खेती की काश्त आदि खर्चे निकाल कर एक एकड़ से 36-38 हज़ार रुपए तक मुनाफा कमाया है। जिले में इस बार लगभग साढ़े पंद्रह हज़ार हेक्टेयर में चने की फसल लगी है। चार से पाँच हज़ार हेक्टेयर की फसल को किसानों ने चनाबूट के रूप में 40 रूपये किलो के दाम पर बेचा है और अच्छा फ़ायदा लिया है। धमतरी विकासखण्ड के खरतुली गांव में रहने वाले चैतुराम ने तीन एकड़ में चने की फसल लगाई और चनाबूट के रूप में 38 रुपये प्रति किलो की दर से बेचकर एक लाख 16 हज़ार रुपये से अधिक का लाभ कमाया। 

धान के बदले की चने की खेती 

खुद रामनाथ बताते हैं कि, उनके पास दो एकड़ खेत है, जिसमें खरीफ के दौरान धान की फसल लगाई गई थी। इसके बाद कृषि विभाग और जिला प्रशासन की समझाईश और मदद से उन्होंने ढेड़ एकड़ रकबे में रबी मौसम में धान के बदले चना की खेती की। रामनाथ ने बताया कि 70-80 दिन में ही चने में फल आ गया और उसे जड़ से उखाड़ कर चनाबूट के रूप में हाइवे के किनारे दुकान के साथ मंडी और लोकल बाज़ार में 35-40 रुपए किलो के भाव से बेच दिया। उन्होंने बताया कि डेढ़ एकड़ रकबे में दो हज़ार 100 किलो चनाबूट हुआ जिसको 40 रुपए किलो के भाव से बेचने पर 84 हज़ार रुपए मिले। रामनाथ ने बताया कि इस राशि से फसल की काश्त लागत लगभग तीस हज़ार रुपए घटा देने पर उन्हें शुद्ध रूप में 54 हज़ार रुपए का मुनाफा हुआ है।

चना स्वास्थ्य के लिए बेहतर 

चनाबूट की मिठास बसंत के मौसम में लोगों को बहुत भाती है साथ ही इसमें मिलने वाले 9 प्रतिशत प्रोटीन, 10 प्रतिशत फाइबर और प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, मैग्नीशियम तथा फ़ास्फोरस इसे पौष्टिक भी बनाते है। रामनाथ बताते है कि अब खेत भी 70-80 दिन में ही खाली हो गया है और तीसरी फसल लेने के लिए तैयार करने का भी पर्याप्त समय मिल रहा है। रामनाथ इस बार उड़द-मूंग को तीसरी फसल के रूप में लगाने की योजना बना रहे है। चना की खेती करने वाले खरतूली के किसान चैतुराम ने बताया की तीन एकड़ में लगे चना बूट को 38 रुपये किलो के भाव से बेचकर एक लाख 76 हजार रुपए से अधिक का व्यवसाय किया और लागत घटाकर एक लाख 16 हज़ार रुपए का शुद्ध मुनाफा कमाया।

पानी की होती है बचत 

कृषि विशेषज्ञ भी रामनाथ और चैतुराम की खेती के तरीके और फायदे का समर्थन करते है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार गर्मी के धान की फसल के लिए प्रति हेक्टे्यर एक करोड़ 20 लाख लीटर पानी की जरूरत होती है। वहीं चना की फसल के लिए केवल 40 लाख लीटर पानी लगता है। ऐसे में चना की खेती से प्रति हेक्टेयर 80 लाख लीटर पानी की बचत हो जाती है। कृषि विशेषज्ञ यह भी मानते है कि धान के बदले चने की खेती से सिंचाई के पानी, खाद, निंदाई-गुड़ाई, कटाई, रोग-व्याधि और दवाई आदि पर होने वाले खर्चो पर भी 40-45 हज़ार रुपए बच जाते है जिसका सीधा फायदा किसानों को ही होता है। 

रासायनिक खादों की खपत होती है कम 

इसके अलावा चने की जड़ों में मिलने वाले राइजोबियम बैक्टीरिया वायुमंडल की नाइट्रोजन गैस की फिक्स करके सीधे पौधे और जमींन को देते है। जिससे खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ती है, जमीन की सेहत सुधरती है और आगे की फसलों के लिए रासायनिक खादों की खपत कम होती है। चना की फसल धान की तुलना में कम अवधि में ही पक जाती है। जिससे खेत जल्दी खाली हो जाता है और तीसरी फसल लगाने के लिए किसानों को तैयारी का पर्याप्त समय भी मिल जाता है। कृषि विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि, चने की फसल से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने वाली मिथेन, कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों का उत्सर्जन भी कम होता है।

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