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मराठा पेशवा बाजीराव 28 मार्च के दिन मुगलों की राजधानी को बर्बाद करने के उद्देश्य से निकले, लेकिन कई जंग जीतने के बावजूद मुगल बादशाह को उसकी गद्दी से नहीं उतार सके। लेकिन, इसके पीछे की जो कहानी है, उसे जानकर आप भी पेशवा बाजीराव की बहादुरी पर नाज करेंगे।

Delhi History: 28 मार्च 1737... यह दिन था, जब मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम दिल्ली पर हमला करने के लिए निकले। योजना थी कि मुगल बादशाह मुहम्मद शाह को दिल्ली से मुक्त कराना है। मुगल बादशाह शुरुआत में बेखर रहा, लेकिन जब पेशवा बाजीराव दिल्ली के करीब पहुंचे तो मुगल शासकों की नींद टूटी। आनन-फानन में मीर हसन खान को 20 हजार पैदल सैनिकों को 12000 घुड़सवारों के साथ पेशवा बाजीराव को परास्त करने के लिए भेजा। लेकिन, पेशवा बाजीराव ने मुगलों की भारी भरकम सेना को भी हरा दिया। इसके बाद मुहम्मद शाह ने हैदराबाद के निजाम और भोपाल के निमाम से सहयोग मांगा, लेकिन फिर भी मराठा को हरा नहीं सके।

मुगलों की राजधानी को पूरी तरह से बर्बाद करने की थी तैयारी 

मीडिया रिपोर्ट्स में प्रसिद्ध लेखक अनीश गोखले की किताब बैटल्स ऑफ द मराठा एम्पायर के हवाले से बताया गया है कि पेशवा बाजीराव ने जब दिल्ली के लिए कूच किया था, तब से फैसला ले लिया था कि मुगलों की राजधानी को पूरी तरह से नष्ट कर दिया जाएगा। पेशवा बाजीराव का काफिला ग्वालियर से होते हुए आगरा से करीब 15 मील का फासला रखते हुए दिल्ली की ओर पहुंचा। 28 मार्च 1737 को कुशकबंदी में डेरा डाला। यह क्षेत्र वर्तमान में राष्ट्रपति भवन के दक्षिण में था। एक अप्रैल को तीन मुगलों के सरदारों को जब सूचना मिली तो उन्होंने पेशवा बाजीराव पर हमला बोल दिया। लेकिन, हार का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही मीर हसन खान भी परास्त हो चुका था।

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो मराठा चाहते थे कि मुगलों की राजधानी को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया जाए, लेकिन बाद में विचार आया कि यह राजधानी लोगों के दिलों में है, इसलिए इसे बर्बाद नहीं किया जा सकता। मराठा लाल किले को घेरे रहे, ताकि मुगल बादशाह मुहम्मद को दिल्ली की गद्दी से हटाया जा सके। मुहम्मद शाह ने भी लाल किले की मजबूत किलेबंदी कर दी थी। पेशवा बाजीराव ने पहले छावनी तालकटोरा क्षेत्र में डाली थी, जिसे बाद में गांव मालचा शिफ्ट कर दिया। आज यहां एक इनडोर स्टेडियम है। मुहम्मद शाह ने कमरुद्दीन खान के अगुआई में भी एक टुकड़ी भेजी, लेकिन मराठा के हाथों हार का सामना करना पड़ा।

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मुगल शासक को दिल्ली की गद्दी से नहीं उतारा, जानिये क्यों

इतिहासकारों की मानें तो मराठाओं का तर्क था कि दिल्ली को बर्बाद किया तो राजनीतिक उथल पथल हो सकती है। दिल्ली की लोगों के दिलों में खास जगह है। अगर इसमें बाधा आई तो राजनीतिक मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। इसके अलावा दूसरा तर्क यह था कि मुगलों के बीच आपसी जंग तय है। इसका लाभ भी मराठा को मिलेगा। साथ ही, मराठा को मुगलों की बड़ी सेनाओं से लड़ने के लिए भी आसान नहीं होगा। इन सबको ध्यान में रखते हुए मराठा ने दिल्ली के आसपास के इलाकों को कब्जे में रखा और कई अहम समझौते किए।

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मीडिया रिपोर्ट्स में लेखक अनीश गोखले के हवाले से बताया गया है कि पेशवा बाजीराव ने कई जंग जीती और मराठा इतिहास को समृद्ध करने में अहम योगदान दिया। सैन्य अभियानों से थके बाजीराव की 28 अप्रैल 1740 में रावेरखेड़ी में आराम के दौरान बुखार के चलते निधन हो गया। उस वक्त उनकी उम्र 40 साल से कम थी। उन्होंने कहा कि अगर वो लंबा जीवन जीते तो मराठा इतिहास और भी समृद्ध होता।

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