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Delhi AIIMS study: दिल्ली एम्स की ओर से की गई रिसर्च में पाया गया है कि पेट के अच्छे बैक्टीरिया फेफड़ों की बीमारियों का इलाज करेंगे। इससे उन मरीजों को फायदा होगा, जिन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है।

Delhi AIIMS study: इंसान के पेट में पाए जाने वाले बैक्टीरिया सांस और फेफड़ों की बीमारी से लड़ने में मददगार है। इसके जरिए आईसीयू में भर्ती रहने के दौरान एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (Acute Respiratory Distress Syndrome) की चपेट में आने वाले मरीजों का इलाज किया जा सकेगा। दिल्ली एम्स की ओर से की गई स्टडी में यह निष्कर्ष निकला है।

सबसे पहले रिसर्च चूहों पर किया गया 

इस पूरी शोध का नेतृत्व करने वाले एम्स में बायोटेक्नोलॉजी के डॉ. रूपेश श्रीवास्तव का कहना है कि यह रिसर्च प्रयोगशाला में सबसे पहले चूहों पर किया गया। शोधकर्ताओं का मानना है कि प्रोबायोटिक के इस्तेमाल से सांस की बीमारी से पीड़ित आईसीयू में भर्ती इंसान भी जल्दी ठीक हो सकते हैं। रिसर्च के मुताबिक, पेट में पाया जाने वाला बैक्टीरिया लैक्टोबैसिलस रमनोसस फेफड़ों की बीमारी को जल्दी ठीक करने में मदद करता है।  

एआरडीएस के 40 प्रतिशत मरीज की मौत 

दिल्ली एम्स के डॉक्टर के मुताबिक, आईसीयू में भर्ती होने वाले 10 प्रतिशत मरीज एआरडीएस की चपेट में आ जाते हैं। जिसमें से 40 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती है। ऐसे में इस पर रिसर्च करना काफी महत्वपूर्ण है। अध्ययन के दौराम शोधकर्ताओं ने देखा कि चूहों में इस बैक्टीरिया की मात्रा पेट में मौजूद होने से यह संक्रमण से लड़ने वाली श्वेत रक्त कोशिकाएं न्यूट्रोफिल की मात्रा को सही से कंट्रोल करता है। 

रिसर्च को जल्द ही इंसानों पर करने की तैयारी

बता दें कि ये फेफड़ों की कोशिकाओं को भरने में मदद करते हैं। लेकिन, फेफड़ों से लंबे समय तक भरने की वजह से फेफड़ों के वायु कोष की क्षमता काफी कम हो जाती है और फेफड़ों में पानी भरने लगता है। ये पेट में पाए जाने वाले यह अच्छे बैक्टीरिया फेफड़ों में न्यूट्रोफिल की मात्रा को सही से नियंत्रित रखते हैं। इस रिसर्च में पता चला है कि सांस की गंभीर स्थिति एआरडीएस और सेप्टिक वाले 50 फीसदी चूहे बैक्टीरिया के इस्तेमाल से जिंदा रह सके। अब इस रिसर्च को जल्द ही इंसानों पर करने की तैयारी की जा रही है।   

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