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हरियाणा के सिरसा में नई पहल की जा रही है। श्मशान घाट में मुर्दों को जलाने के लिए इस्तेमाल की जा रही सैकड़ों टन लकड़ी की जगह अब गोकाष्ठ का इस्तेमाल हो रहा है। गाय के गोबर से बनी इस लकड़ी के इस्तेमाल से न केवल पेड़ों को कटने से बचाया जा रहा है बल्कि धुआं कम होने से पर्यावरण प्रदूषण से भी बच रहे हैं। वहीं, इससे गोशालाएं भी आत्मनिर्भर बन सकती हैं। सिरसा में इस मॉडल की सफलता के बाद पूरे देश में इसे लागू किया जा सकता है।

Green Cremation Ground : हरियाणा मानवाधिकार आयोग (एचएचआरएस) ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्ववूर्ण कदम उठाते हुए दाह संस्कार के लिए ग्रीन श्मशान घाटों की अवधारणा को सही ठहराया है। सिरसा जिले के अनेक गांवों में इसे लागू किया जा चुका है। इस अवधारणा के तहत दांह संस्कार में लकड़ी की बजाय गोकाष्ठ (गोबर के कंडे) से करना है, जिससे पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सके। इसका श्रेय पर्यावरणविद् व सिरसा के दड़बी गांव निवासी डॉ. राम जी जैमल को जाता है। 

दस गुना कम इंधन की पड़ती है जरूरत

वन अनुसंधान संस्थान देहरादून द्वारा किए गए अध्ययन से पुष्टि हुई है कि इस विधि में केवल 60 किलोग्राम गोकाष्ठ की आवश्यकता होती है, जबकि पारंपरिक दाह संस्कार में 500-600 किलोग्राम लकड़ी लगती है। इसके अलावा यह विधि कम लागत वाली, धुआं रहित और प्रतिकूल मौसम में भी प्रभावी है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व सेवानिवृत्त अधिकारी एसके गुलाटी ने भी ग्रीन श्मशान घाटों प्रस्तुतिकरण दिया है।

इस योजना को आगे बढ़ाने की पहल

एसके गुलाटी ने हरियाणा सरकार से वित्तीय और प्रबंधकीय सहायता की आवश्यकता पर जोर दिया क्योंकि वर्तमान में ग्रीन श्मशानों का रखरखाव केवल ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है। इस मुद्दे को हल करने के लिए, HHRC ने राज्य सरकार को प्रतिपूरक वनीकरण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (CAMPA) से धन आवंटित करने की सिफारिश की है। हरियाणा मानवाधिकार आयोग ने उल्लेख किया कि CAMPA में बड़ी राशि अप्रयुक्त है, जिसे हरियाणा में ग्रीन श्मशानों के कार्यान्वयन के लिए उपयोग किया जाना चाहिए।

वन संसाधनों पर निर्भरता को करना है कम

गुलाटी ने बताया कि स्थानीय समुदायों को दांह संस्कार में लकड़ी पर निर्भरता कम करने में मदद करना है। ग्रीन श्मशान घाटों से पर्यावरण संरक्षण होगा और जंगलों को संरक्षित करने और स्थायी संसाधन उपयोग को भी बढ़ावा मिलेगा। हरियाणा मानवाधिकार आयोग के प्रोटोकॉल, सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी डॉ. पुनीत अरोड़ा ने बताया कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए अगली सुनवाई 21 मई 2025 को होगी, जिसमें संबंधित विभागों को अपनी प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। अगर यह पहल सफल होती है, तो यह अन्य भारतीय राज्यों के लिए एक मॉडल होगा, जिससे पर्यावरण अनुकूल श्मशान प्रणाली को बढ़ावा मिलेगा।

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