padma awards 2025: गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार (25 जनवरी) को केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कार 2025 की घोषणा की। इनमें भजन गायक भेरू सिंह चौहान और महिला उद्यमी सैली होल्कर सहित मध्य प्रदेश की 5 विभूतियों को पद्मश्री अवार्ड के लिए नामित किया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मार्च अप्रैल में इन्हें देश के सर्वश्रेष्ट अवार्ड से सम्मानित करेंगी।
देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान तीन कैटेगरी में दिए जाते हैं। इसमें पद्म भूषण, पद्म विभूषण और पद्मश्री शामिल हैं। केंद्र सरकार ने देश-दुनिया की 139 हस्तियों को पद्म पुरस्कारों के लिए नामित किया है। इनमें मध्य प्रदेश के 5 नाम शामिल हैं। सभी को पद्म श्री अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा।
मध्यप्रदेश में इन शख्सियतों को मिला पद्मश्री अवार्ड
- बुद्धेंद्र कुमार जैन, चिकित्सा
योगदान: डॉ. बुद्धेंद्र कुमार जैन सतना जिले के सदगुरु सेवा ट्रष्ट के प्रमुख ट्रष्टी और प्राख्यात नेत्र चिकित्सक हैं। देश में अंधत्व निवारण कार्यक्रम चलाकर इनके ट्रष्ट ने लाखों लोगों का जीवन रोशन किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान है। अनेक चिकित्सा शिविरों का आयोजन कर नि:शुल्क चिकित्सा सेवाएं प्रदान की हैं।
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- भेरू सिंह चौहान कला
योगदान: भेरू सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश की पारंपरिक लोककला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने विशेष रूप से बघेली लोकगीतों और नृत्यों के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी कला ने राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध किया है।
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- हरिचंदन सिंह भट्टी, कला
योगदान: हरिचंदन सिंह भट्टी ने मध्य प्रदेश की आदिवासी कला और संस्कृति के संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने गोंड और भील जनजातियों की पारंपरिक चित्रकला और हस्तशिल्प को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में मदद की है। - जगदीश जोशीला, साहित्य और शिक्षा
योगदान: जगदीश जोशीला हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित लेखक और कवि हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाजिक मुद्दों को उठाया है और शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किए हैं। उनकी कविताएँ और लेख समाज में जागरूकता फैलाने में सहायक रहे हैं।
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- सैली होल्कर, व्यापार और उद्योग
योगदान: सैली होल्कर ने मध्य प्रदेश के महेश्वर में हैंडलूम उद्योग के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने 'रेहवा सोसाइटी' की स्थापना की, जिसके माध्यम से महेश्वरी साड़ियों और वस्त्रों को नई पहचान मिली और स्थानीय बुनकरों को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए।