Diastasis Recti: हर महिला की जिंदगी का सबसे खूबसूरत एहसास मां बनने पर होता है। लेकिन कुछ महिलाएं इस दौर में भी पोस्टपार्टम डिप्रेशन की वजह से मानसिक रूप से परेशान रहती हैं। यह एक तरह की मानसिक समस्या है, जो महिला के सोचने, महसूस करने या काम करने के तरीके पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। इस वजह से महिला घबराहट, उदासी, एंग्जायटी, डिप्रेशन और अकेलापन महसूस करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में 22 प्रतिशत महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजरती हैं। मौटे तौर पर हर 5 में से एक महिला इसका शिकार होती है।
डिप्रेशन के प्रकार: पोस्टपार्टम डिप्रेशन अलग-अलग तरह का होता है। इसके एक प्रकार बेबी ब्लूज में डिप्रेशन का स्तर कम होता है और महिला कुछ ही हफ्तों में अपने आप ठीक हो जाती है। जबकि कुछ महिलाओं में डिप्रेशन लगातार बना रहता है, जिससे वह आत्मघाती कदम भी उठा सकती है। इसे सिवियर पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है। इस वजह से महिला ही नहीं उसके बच्चे की नींद और भूख दोनों कम हो सकती है। उसका शारीरिक-मानसिक विकास भी प्रभावित होता है। साथ ही परिवार के दूसरे सदस्यों को भी मानसिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है।
क्या हैं कारण: प्रेगनेंसी से लेकर डिलीवरी तक का समय एक महिला के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होता है। इस दौरान महिलाओं में शारीरिक-भावनात्मक रूप से कई तरह के बदलाव आते हैं, जिनके बारे में अनभिज्ञता, समुचित देख-रेख और उपचार ना कराए जाने पर पोस्टपार्टम डिप्रेशन बढ़ता चला जाता है। इसके कई अन्य कारण हो सकते हैं। जैसे-कम उम्र में मां बनना, हार्मोनल बदलाव होना, डिलीवरी के बाद कमजोरी आना, प्रेगनेंसी के दौरान वजन बढ़ने और फिगर बिगड़ने का डर होना, पति और परिवार के सदस्यों का सपोर्ट ना मिलने पर तनावग्रस्त रहना, नवजात शिशु की देखभाल को लेकर चिंता होना, नींद पूरी नहीं हो पाना, पोषक आहार ना मिल पाना।
प्रमुख लक्षण: पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण हर महिला में अलग-अलग हो सकते हैं। आमतौर पर पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण में भूख कम लगना या बहुत ज्यादा खाने लगना, किसी से बात करने का मन ना करना, मूड स्विंग होना, उदास या निराश होना, ज्यादा चिंता करना, भावनाओं पर काबू ना रख पाना, बिना किसी कारण रोने का मन करना, नींद ना आना, कमजोरी और थकावट महसूस करना, किसी भी काम में मन ना लगना, चिड़चिड़ापन और गुस्सा बढ़ना, बच्चे से जुड़ाव महसूस ना होने के कारण उस पर ध्यान ना देना, खुद को या बच्चे को आघात पहुंचाने की कोशिश करना आदि।
करें डॉक्टर से कंसल्ट: अगर मां खुद स्वस्थ नहीं होगी, तो इसका सीधा असर बच्चे के विकास और महिला से जुड़े रिश्तों पर देखा जाता है। इसलिए महिला में पोस्टपार्टम डिप्रेशन का अंदेशा होने पर समुचित सहयोग देना चाहिए। जरूरत हो तो यथाशीघ्र डॉक्टर से कंसल्ट करना चाहिए।
ट्रीटमेंट का तरीका: पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षणों के आधार पर इसका इलाज किया जाता है। चिंता को कम करने के लिए मरीज को एंटीडिप्रेसेंट दवाइयां दी जाती हैं। कॉगनेटिव बिहेवियर थेरेपी जैसी साइकोथेरेपी के माध्यम से महिला की काउंसलिंग की जाती है, जिससे महिला इस स्थिति का सामना बेहतर तरीके से कर पाती है।
फैमिली सपोर्ट है जरूरी: डिलीवरी के बाद बच्चे की परवरिश या महिला के रहन-सहन को लेकर परिवार के सदस्यों को यथासंभव उसकी मदद करनी चाहिए। डिलीवरी के बाद मां को खुश और पॉजिटिव रहने के लिए फैमिली को हैप्पी रखने का प्रयास करना चाहिए। सबसे जरूरी है कि महिला के पूरे आराम का ध्यान भी फैमिली मेंबर्स को रखना चाहिए। रात में पूरी नींद के साथ ही दिन में भी महिला को एक-दो घंटे सोना चाहिए। इस दौरान फैमिली मेंबर्स, बच्चे का ध्यान रखें। फैमिली मेंबर्स को महिला के छोटे-छोटे काम करने में मदद करनी चाहिए। चूंकि बच्चे का विकास मां की डाइट पर निर्भर करता है, इसलिए महिला के समुचित पोषण का ध्यान फैमिली मेंबर्स को रखना जरूरी है। उनकी डाइट में एक्स्ट्रा कैलोरी डाइट, मौसमी फल-सब्जियों और डेयरी प्रोडक्ट्स को शामिल करना चाहिए।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन से बचाव के उपाय
- पोस्टपार्टम डिप्रेशन से बचने के लिए महिलाओं को कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है-
- महिला को डिलीवरी से पहले ही बच्चे के आने की तैयारी कर लेनी चाहिए, ताकि बाद में किसी तरह की परेशानी ना हो।
- बच्चे का ध्यान रखने के साथ-साथ मां अपनी सेहत का भी ख्याल रखें। शारीरिक बदलावों को खुशी और सहजता से स्वीकारें।
- अपने पति, परिवार या करीबियों से खुलकर बात करें। अपनी उलझन और परेशानी बताने से ना हिचकिचाएं।
- अपने लिए समय जरूर निकालें। ऐसे काम करें, जिसमें आपको खुशी मिलती है।
- अपनी डेली रूटीन में योग और एक्सरसाइज जैसी फिजिकल एक्टिविटीज भी शामिल करें।
- शाम के समय अपने बच्चे को लेकर घूमने जाएं, रिलैक्स फील करेंगी।
- पोषण से भरपूर संतुलित आहार लें।
मेडिकल सजेशन
डॉ. निशा कपूर
एचओडी-गायनेकोलॉजी
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल, एनसीआर