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देश की आजादी के आंदोलन में हरियाणा का खास योगदान रहा था। जिनमें कई योद्धाओं व स्थानों का खास महत्व है। हिसार के ‘हांसी की लाल सड़क’ उन्हीं में से एक है। जहां अंग्रेजों ने सेनानियों पर रोड रोलर चलाकर जिंदा रौंद दिया था।

Memories of freedom, महावीर यादव। हांसी हरियाणा के प्राचीन एवं ऐतिहासिक शहरों में से एक है। यह वही शहर है जहां आजादी के परवानों ने कचहरी में दिन-दहाड़े डिप्टी कलेक्टर बेडर्नबर्न की कोर्ट में गोली मारकर हत्या की थी। हांसी शहर अपनी आगोश में ऐसी ही कई यादों को संजोए हुए है और उन्हीं में से है लाल सड़क। यह वहीं सड़क है जहां 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों ने अपनी हुकुमत का विरोध करने वाले सेनानियों को जिंदा रोड रोलर से रौंदकर रक्त से लाल कर दिया था। आजादी के आंदोलन में अंग्रेजों के जुल्म की गवाह बनी इस सड़क को आज भी लाल सड़क के नाम से ही जाना जाता है। कोर्ट में कलेक्टर की हत्या कर आजादी की जंग का ऐलान करने वाला हांसी देश का पहला शहर बना था।

Res Road
हांसी में शहीदों की याद में बनाई गई दीवार।
यादगार दीवार पर अंकित शहीदों के नाम 

स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के जुल्म की गवाह बनी सड़क पर शहीदों की याद में दीवार बनाई गई। जिस पर अंग्रेजी हुकुमत लड़ते हुए देश की आजादी के लिए शहीदों के नाम अंकित किए गए। ताकि आने वाली पीढ़ियों को देश की आजादी के लिए अपने कुर्बानी देने वाले शहीदों की कुर्बानी से अवगत करवाया जा सके। इनमें हांसी के लाल हुकमचंद जैन, लाल फकीर चंद जैन, मिर्जा मुनीर बेग व यति पूर्णा, रोहनात गांव से बीरड़दास बैरागी, रूपा खाती, न्योदा जाट और पुट्ठी मंगल खां गांव से मंगल खान, कैदे खां का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। ऐसे अनगिनत शहीदों ने अंग्रेजी हुकुमत की खिलाफत कर देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी।

 

कोर्ट रूम में गोली मारकर की थी कलेक्टर की हत्या 

हांसी देश का ऐसा पहला शहर था, जहां 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में दिन दहाड़े कोर्ट रूम में गोली मारकर अंग्रेजी हुकुमत के कलेक्टर बेडर्नबर्न की हत्या कर दी थी। इस घटना के बाद आमजन ब्रिटिश शासन के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए आजादी में शामिल होने लगा था।

नगर परिषद के रिटायर्ड सेक्रेटरी सतीश चूचूरा ने बताया कि कई लोगों को हांसी में सड़क पर लिटाकर गिरड़ी (रोड़ रोलर) के नीचे कुचल दिया गया। जिनकी याद में वर्ष 1992 में लाल सड़क पर एक शहीद स्मारक भी बनाया गया था।

इतिहासकार जगदीश सैनी बताते हैं कि हांसी में विद्रोह का नेतृत्व करने और मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को सहयोग देने के लिए पत्र लिखने पर लाल हुकमचन्द जैन, फकीर चन्द, मिर्जा मुनीर बेग और मुर्तजा बेग पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया और उनको उन्हीं के घर के सामने फांसी पर लटकाने की सजा दी। अंग्रेजों ने हुकमचन्द जैन को दफनाया और मुनीर बेग को फांसी देने के बाद जला गया।

1803 में बनी थी स्किनर होर्स रेजिमेंट 

1957 की क्रांति को दबाने में फरीदकोट की सेना ने अंग्रेजों का साथ दिया था। अंग्रेजों ने मंगल खां व उनके बेटे कैदे खां को किले पर तोप से बांधकर उड़ा दिया था। सेनानी लाला हुकुम चंद जैन व मिर्जा मुनिर बेग को 1857 में सरेआम फांसी दी। विद्रोह को कुचलने के लिए सेनानियों को सड़क पर लिटाकर रोड रोलर (गिरड़ी) से कुचला गया। मंगल खां ने सबसे पहले विद्रोह का बिगुल बजाया था। यहां बड़सी गेट के पास बाजार में पृथ्वीराज चौहान का किला है। ऊंचें टीले पर बने इस किले को असीगढ़ का किला भी कहा जाता है। यहां तलवार बनाने का कारखाना भी था। संस्कृत में तलवार को असी कहते हैं और हांसी को प्राचीनकाल में असीगढ़ के नाम से जाना जाता था। देश की पहली घोड़ा रेजिमेंट हांसी में ही बनी थी। 23 फरवरी 1803 को स्किनर होर्स रेजिमेंट का गठन हुआ था।

मजबूत दीवारों के बीच बसा था शहर 

हिसार जिले का उपमंडल हांसी का इतिहास पुराना है। बताया जाता है कि हांसी कभी राजधानी तो कभी जिला मुख्यालय रहा। आज भी शहर की पुरानी बस्ती एक मजबूत किलेबंदीनुमा चारदीवारी के भीतर बसी है। अलग अलग कोनों पर शहर के पांच प्रवेश द्वार होते थे। हालांकि बड़सी गेट को छोड़कर अब बाकी अपना अस्तित्व खो चुके हैं।

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