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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाएगा। आज हम दिल्ली की ऐसी महिला हेड शेफ की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर हार चुका इंसान भी कामयाबी पाने के लिए फिर से उठ खड़ा हो जाएगा।

Women's Day 2025 Delhi: किसी महिला के घर से बाहर निकलकर नौकरी करने पर बवाल मच जाता था, लेकिन अब दौर बदल चुका है। आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपना और अपने परिवार का नाम रोशन कर रही हैं। यहां तक कि हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में भी महिलाओं का अभूतपूर्व योगदान है। महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाएगा। तो आज हम दिल्ली की ऐसी महिला हेड शेफ की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए कामयाबी का शिखर छुआ है। हम डियर डोना की हेड शेफ लिलिमा खान की बात कर रहे हैं। उनकी स्टोरी पढ़कर हार मान चुका इंसान भी कामयाबी पाने के लिए फिर से खड़ा हो जाएगा। तो चलिये शुरू करते हैं उनकी कहानी...

छोटी उम्र में मां-बाप का साया उठा
लिलिमा खान ने एक इंटरव्यू में बताया कि 5 साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया था। उनके पिता तैमूर इलाके में एक छोटी सी जगह पर रोटी, खिचड़ी और दाल बेचते थे। उनके निधन के बाद उनका परिवार मुसीबत में घिर गया। छह महीने में उनकी मां का भी निधन हो गया। घर में बड़ी बहन और दो भाई थे। बहन की शादी हुई, लेकिन उस पर अत्याचार हुआ, जिसके बाद उसने सुसाइड कर लिया। बड़ा भाई नशा करने लगा। वो इतना ज्यादा नशा करता था कि उसने हमारा घर भी बेच दिया।

इसके बाद उसने अपने छोटे भाई के साथ सड़कों पर जिंदगी बितानी शुरू कर दी। खाने के लिए दिनभर भटकते रहते। जब खाना नहीं मिलता तो डस्टबीन में खाने पीने की चीजें तलाशते। उन्होंने बताया कि यह सब इतना दुखद था कि इसकी कल्पना करना भी बेहद दुखदायी है। लेकिन आगे की कहानी तो और भी मुश्किल भरी थी। 

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भाई को चाची अपने साथ ले गई, पीछे रह गई अकेली 
लिलिमा खान का कहना है कि वो और उसका भाई किसी तरह जिंदगी गुजार रहे थे, लेकिन अचानक चाची आई और भाई को अपने साथ ले गई। उसे अकेले ही सड़कों पर रहना पड़ा। सुखद पहलु यह रहा कि एक लड़की से दोस्ती हुई, जिसके साथ उसके दो भाई भी थे। हम सभी कूड़े में खाने की तलाश करते और जो कुछ भी मिलता, वो खा लेते। अगर खाना नहीं मिलता तो भूखा सोना पड़ता। उन्होंने कहा कि उम्र बढ़ने के साथ सुरक्षा को लेकर भी डर सताता था। बचपन में भी पिता के दोस्त गलत हरकते करते थे, इसलिए डर लगता था कि बड़ा होने पर तो कुछ भी गलत ही होगा। वो रात को सोने के लिए ऐसी जगह देखती, जो सुरक्षित हो। खुद को गुद्दों के पीछे छिपाकर सोते थे। उन्होंने कहा कि लड़का होने के बावजूद उसकी दोस्त के भाई भी हमेशा सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते थे। 

लिलिमा खान ने कहां से चढ़ी बदलाव की पहली सीढ़ी 
लिलिमा खान से जब पूछा गया कि इस जिंदगी में पहला बदलाव कब आया तो जवाब दिया कि उस वक्त उम्र 11 साल होगी। एक एनजीओ ने उसे बचाकर एक सुधार केंद्र भेजा, जहां से उसकी शिक्षा शुरू हुई। उन्होंने पहले पढ़ाई नहीं की थी, इसलिए पहले साल बुनियादी शिक्षा दी गई। इसके अगले साल 5वीं कक्षा में दाखिला दे दिया गया। उसे पढ़ना पसंद था, इसलिए उसने कड़ी मेहनत करके अच्छे अंक हासिल किए। लेकिन फिर से एक दुखद पड़ाव आ गया। 

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बंधक बनाने का किया प्रयास, एनजीओ ने मुक्त कराया
लिलिमा खान ने बताया कि उसकी मौसी 13 साल की उम्र में उन्हें अपने साथ ले गई। भरोसा दिया कि अच्छी तरह देखभाल करेंगी। उन्हें 2000 महीने की तनख्वाह पर एक जूता फैक्ट्री में काम लगवा दिया। लेकिन, बहुत पिटाई भी होती थी। उसने अपने भाई को इसकी जानकारी दी। भाई ने एक एनजीओ की मदद से उन्हें मुक्त कराया। उस एनजीओ का नाम किलकारी रेनबो होम था। इसके बाद मैंने 12वीं की पढ़ाई पूरी की। फिर क्रिएटिव सर्विसेज सपोर्ट ग्रुप ने एक रेस्टोरेंट में काम करने के काबिल बनाया। उन्होंने बताया कि यह एक धर्मार्थ संगठन है। इसे चलाने वाले आनंद कपूर एक दिन आए और सभी से पूछा कि आगे क्या करना चाहते हैं। मैंने कहा कि मैं शेफ बनना चाहती हूं। इस पर उन्होंने लोधी रोड स्थित एक रेस्तरां में कुक की नौकरी लगवा दी। 

स्टाफ के लिए नहीं, गेस्ट के लिए बनाना है खाना 
इस रेस्तरां ने लिलिमा खान को स्टाफ के लिए खाना बनाने के लिए जॉब दी थी, लेकिन वो गेस्ट के लिए भी खाना बनाना चाहती थी। उन्होंने रेस्तरां स्टाफ से मदद मांगी और सभी ने उनका सहयोग किया। वे 12 से 14 घंटे कड़ी मेहनत करती और सीखने की क्षमता पहले से तेज थी। उन्होंने 2 से 3 साल में इतालवी व्यंजन बनाने में महारत हासिल की। लिलिमा बताती हैं कि वे तीन से चार रेस्तरां में काम कर चुकी हैं। फिलहाल वो कुक की 35 सदस्यीय टीम को बतौर हेड शेफ देख रही हैं। 

उन्होंने कहा कि बचपन भले ही सड़कों पर गुजरा हो, लेकिन आज अपने घर में रहती हैं। साथ ही, संपत्तियों में भी निवेश किया है। उन्होंने कहा कि अगर किसी गलत संगत में फंसती या दुखी होकर गलत कदम उठाती तो यह पड़ाव देखने को नहीं मिलता। उन्होंने संदेश दिया कि भले ही परिस्थितियां कितनी भी विपरित न हो, लेकिन धैर्य और मेहनत से कामयाबी हासिल की जा सकती है। 

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